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पूजा से सम्बंधित तीस आवश्यक नियम और नवरात्रि में माँ भगवती जी का पूजन कैसे करें आओ जानें*

March 19, 2020 10:44 PM
*पूजा से सम्बंधित तीस आवश्यक नियम और नवरात्रि में माँ भगवती जी का पूजन कैसे करें आओ जानें*
 
सुखी और समृद्धिशाली जीवन के लिए देवी-देवताओं के पूजन की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। आज भी बड़ी संख्या में लोग इस परंपरा को निभाते हैं। पूजन से हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, लेकिन पूजा करते समय कुछ खास नियमों का पालन भी किया जाना चाहिए।
 
अन्यथा पूजन का शुभ फल पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां 30 ऐसे नियम बताए जा रहे हैं जो सामान्य पूजन में भी ध्यान रखना चाहिए। इन बातों का ध्यान रखने पर बहुत ही जल्द शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं।
 
*ये नियम इस प्रकार हैं…*
 
1- सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। प्रतिदिन पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।
 
2-शिवजी, गणेशजी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।
 
3 मां दुर्गा को दूर्वा (एक प्रकार की घास) नहीं चढ़ानी चाहिए। यह गणेशजी को विशेष रूप से अर्पित की जाती है।
 
4 सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।
 
5  तुलसी का पत्ता बिना स्नान किए नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के पत्तों को तोड़ता है तो पूजन में ऐसे पत्ते भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
 
6 शास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए। सुबह 4 से 6 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त में पूजन और आरती होनी चाहिए। इसके बाद प्रात: 9 से 10 बजे तक दूसरी बार का पूजन। दोपहर में तीसरी बार पूजन करना चाहिए।
इस पूजन के बाद भगवान को शयन करवाना चाहिए। शाम के समय चार-पांच बजे पुन: पूजन और आरती। रात को 8-9 बजे शयन आरती करनी चाहिए। जिन घरों में नियमित रूप से पांच  पूजन किया जाता है, वहां सभी देवी-देवताओं का वास होता है और ऐसे घरों में धन-धान्य की कोई कमी नहीं होती है।
 
7 प्लास्टिक की बोतल में या किसी अपवित्र धातु के बर्तन में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और लोहे से बने बर्तन। गंगाजल तांबे के बर्तन में रखना शुभ रहता है।
 
8 स्त्रियों को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यह इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।
 
9 मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ दिखाकर नहीं बैठना चाहिए।
 
10 केतकी का फूल शिवलिंग पर अर्पित नहीं करना चाहिए।
 
11  किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी।
 
12  दूर्वा (एक प्रकार की लंबी गांठ वाली घास) रविवार को नहीं तोडऩी चाहिए।
 
13  मां लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल अर्पित किया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ा सकते हैं।
 
14  शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक बासी नहीं माने जाते हैं। अत: इन्हें जल छिड़क कर पुन: शिवलिंग पर अर्पित किया जा सकता है।
 
15  तुलसी के पत्तों को 11 दिनों तक बासी नहीं माना जाता है। इसकी पत्तियों पर हर रोज जल छिड़कर पुन: भगवान को अर्पित किया जा सकता है।
 
16  आमतौर पर फूलों को हाथों में रखकर हाथों से भगवान को अर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढ़ाने के लिए फूलों को किसी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और इसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को अर्पित करना चाहिए।
 
17  तांबे के बर्तन में चंदन, घिसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।
 
18  हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।
 
19 बुधवार और रविवार को पीपल के वृक्ष में जल अर्पित नहीं करना चाहिए।
 
20 पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखकर करनी चाहिए। यदि संभव हो सके तो सुबह 4 से 8 बजे के बीच में पूजा अवश्य करें।
 
21  पूजा करते समय आसन के लिए ध्यान रखें कि बैठने का आसन ऊनी होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।
 
22 घर के मंदिर में सुबह एवं शाम को दीपक अवश्य जलाएं। एक दीपक घी का और एक घर के बाहर सरसों के तेल का जलाना चाहिए।
 
23  पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद उसी स्थान पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएं अवश्य करनी चाहिए।
 
24  रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।
 
25  भगवान की आरती करते समय ध्यान रखें ये बातें- भगवान के चरणों की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान के समस्त अंगों की कम से कम सात बार आरती करनी चाहिए।
 
26  पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।
 
27  गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें।
 
28  अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें। शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्तियों की पूजा वर्जित की गई है।
 
जो भी मूर्ति खंडित हो जाती है, उसे पूजा के स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित मूर्तियों की पूजा अशुभ मानी गई है। इस संबंध में यह बात ध्यान रखने योग्य है कि सिर्फ शिवलिंग कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं माना जाता है।
 
29-मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें, उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें।
 
30- विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं।
 
*नवरात्रि में पूजा कैसे करें*
 
25 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि हिंदु धर्म का एक विशेष पर्व है। यह संस्कृत से लिया गया एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देशभर में यह त्यौहार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं, लेकिन एक चीज़ जो हर जगह सामान्य होती है वो है माँ दुर्गा की पूजा। हर व्यक्ति नवरात्र के समय में माता को प्रसन्न करने के लिए पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करता है और अपने सभी दुखों को दूर कर देने की प्रार्थना करता है।
 
*किसी समस्या से हैं परेशान,तो समाधान पाने के लिए मुझे प्रश्न पूछ सकते हैं*
 
नवरात्रि के दौरान लोग 9 दिनों तक व्रत रखते हैं। माता में इतनी आस्था रखने के बावजूद, अभी भी आप नवरात्रि और माँ दुर्गा के विषय में बहुत सी बातों से अनजान होंगे। जैसे, नवरात्रि के आख़िरी दिन पर ही कन्या पूजन क्यों करते हैं? माता की सवारी क्या-क्या होती है? माता को क्या भोग लगाएँ! नवरात्रि के 9 दिनों में किन रंगों का इस्तेमाल करें, कौन से मंत्र का जाप करें। इस तरह की कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ आपको नहीं होंगी, इसीलिए अपने इस लेख के ज़रिए आज हम आपको नवरात्रि से जुड़ी सभी जानकारियाँ देंगे। 
 
*1 साल में कुल कितने होते हैं नवरात्र?*
 
देवी पुराण के अनुसार एक साल में कुल चार नवरात्र होते हैं- दो प्रत्यक्ष(चैत्र और आश्विन) और दो गुप्त(आषाढ़ और माघ)। साल के पहले माह चैत्र में पहली नवरात्रि, साल के चौथे माह यानि आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि, अश्विन माह में तीसरी नवरात्रि और ग्यारहवें महीने में चौथी नवरात्रि मनाते हैं। इन चारों नवरात्रों में आश्विन माह की “शारदीय नवरात्रि” और चैत्र माह की “चैत्र नवरात्रि” सबसे प्रमुख मानी जाती है। 
 
आने वाले सालों में चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि की तारीख़ 
 
चैत्र नवरात्रि 
 
बुधवार, 25 मार्च 2020मंगलवार, 13 अप्रैल 2021शनिवार, 2 अप्रैल 2022
 
शारदीय नवरात्रि 
 
शनिवार, 17 अक्टूबर 2020 गुरुवार, 7 अक्टूबर 2021सोमवार, 26 सितंबर 2022
 
*चैत्र नवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व क्या है?*
 
साल में आने वाले सभी नवरात्रि ऋतुओं के संधि काल में होते हैं। चैत्र नवरात्रि के दौरान मौसम बदलता है और गर्मियों की शुरुआत हो जाती है। ऐसे में बीमारी आदि होने का सबसे ज़्यादा खतरा रहता है। नवरात्रि का व्रत रखने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, मानसिक शक्ति प्राप्त होती है और शरीर एवं विचारों की भी शुद्धि होती है। 
 
*नवरात्रि के पहले दिन क्यों करते हैं कलश स्थापना(घटस्थापना)*
 
पुराणों के अनुसार कलश को भगवान विष्णु का रुप माना गया है, इसलिए लोग माँ दुर्गा की पूजा से पहले कलश स्थापित कर उसकी पूजा करते हैं।
 
*कैसे करें घटस्थापना?*
 
नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त, सही समय और सही तरीके से ही घटस्थापना करनी चाहिए। पूजा स्‍थल पर मिट्टी की वेदी बनाकर या मिट्टी के बड़े पात्र में जौ या गेहूं बोएं। अब एक और कलश या मिट्टी का पात्र लें और उसकी गर्दन पर मौली बाँधकर उसपर तिलक लगाएँ और उसमें जल भर दें। कलश में अक्षत, सुपारी, सिक्का आदि डालें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र में बांध लें। इन चीज़ों की तैयारी के बाद ज़मीन को साफ़ कर के पहले जौ वाला पात्र रखें, उसके बाद पानी से भरा कलश रखें, फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।  अब आपकी कलश स्थापना की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। कलश पर स्वास्तिक का चिह्न बनाकर दुर्गा जी और शालीग्राम को विराजित कर उनकी पूजा करें। इस कलश को 9 दिनों तक मंदिर में ही रखें। आवश्यकतानुसार सुबह-शाम कलश में पानी डालते रहें। 
 
*किस दिन करें, किस देवी की पूजा?*
 
प्रतिपदा – शैलपुत्री
 
द्वितीया – ब्रह्मचारिणी 
 
तृतीया – चंद्रघंटा 
 
चतुर्थी – कूष्मांडा
 
पंचमी – स्कंदमाता 
 
षष्ठी – कात्यायनी 
 
सप्तमी – कालरात्रि 
 
अष्टमी – महागौरी 
 
नवमी – सिद्धिदात्री
 
माँ दुर्गा के सोलह श्रृंगार?
 
कुमकुम या बिंदीसिंदूरकाजलमेहँदीगजरालाल रंग का जोड़ामांग टीकानथकान के झुमकेमंगल सूत्रबाजूबंदचूड़ियांअंगूठीकमरबंदबिछुआ  पायल
 
*क्या है सभी 9 देवियों के नाम का अर्थ?*
 
शैलपुत्री – पहाड़ों की पुत्री
 
ब्रह्मचारिणी – ब्रह्मचारीणी
 
चंद्रघंटा – चाँद की तरह चमकने वाली 
 
कूष्माण्डा – पूरा जगत में फैले पैर 
 
स्कंदमाता – कार्तिक स्वामी की माता
 
कात्यायनी – कात्यायन आश्रम में जन्मी
 
कालरात्रि – काल का नाश करने वाली,
 
महागौरी – सफेद रंग वाली मां
 
सिद्धिदात्री – सर्व सिद्धि देने वाली।
 
*नवरात्रि में क्यों बोया जाता है जौ?*
 
नवरात्रि में जौ बोने के पीछे प्रमुख कारण यह माना जाता है कि जौ यानि अन्न ब्रह्म स्वरुप है, और हमें अन्न का सम्मान करना चाहिए। इसके अलावा धार्मिक मान्यता के अनुसार धरती पर सबसे पहली फसल जौ उगाई गई थी। 
 
*नवरात्रि में क्यों करते हैं कन्या पूजन ?*
 
छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता है और वे ऊर्जा का प्रतीक मानी जाती हैं, इसीलिए नवरात्रि में इनकी विशेष पूजा करते हैं।  
 
 
उम्र के अनुसार कन्याओं को कौन सी देवी का स्वरूप मानते हैं!
 
चार साल की कन्या – कल्याणी, 
 
पांच साल की कन्या – रोहिणी, 
 
छ: साल की कन्या – कालिका, 
 
सात साल की कन्या – चण्डिका, 
 
आठ साल की कन्या – शांभवी, 
 
नौ साल की कन्या – दुर्गा  
 
दस साल की कन्या – सुभद्रा 
 
कन्या पूजन में क्यों भैरव के रूप में रखते हैं बालक ?
 
भगवान शिव ने माँ दुर्गा की सेवा के लिए हर शक्तिपीठ के साथ एक-एक भैरव को रखा हुआ है, इसलिए देवी के साथ इनकी पूजा भी ज़रूरी होती है। तभी कन्या पूजन में भैरव के रूप में एक बालक को भी रखते हैं।
 
दिन के अनुसार तय होता है माता का वाहन !
 
नवरात्रि का पहला दिन यदि रविवार या सोमवार हो तो मां दुर्गा “हाथी” पर सवार होकर आती हैं। यदि शनिवार और मंगलवार से नवरात्रि की शुरुआत हो तो माता “घोड़े” पर सवार होकर आती हैं। वहीं गुरुवार और शुक्रवार का दिन नवरात्रि का पहला दिन हो तो माता की सवारी “पालकी” होती है। और अगर नवरात्रि बुधवार से शुरू हो तो मां दुर्गा “नाव” में सवार होकर आती हैं।
 
कौन-कौन से होते हैं माता के वाहन?
 
हाथी, घोड़ा, डोली, नाव, मुर्गा, भैंस, उल्लू, गधा, नंगे पांव, सिंह, हंस, बाघ, बैल, गरूड, मोर  
 
माता के किन वाहनों को मानते हैं शुभ और किन्हें अशुभ
 
हाथी- शुभ 
 
घोड़ा- अशुभ 
 
डोली- अशुभ 
 
नाव- शुभ 
 
मुर्गा-अशुभ 
 
नंगे पाव- अशुभ
 
गधा- अशुभ 
 
हंस- शुभ
 
सिंह- शुभ
 
बाघ- शुभ 
 
बैल- शुभ 
 
गरूड- अशुभ
 
मोर- शुभ 
 
नवरात्रि के 9 दिनों में 9 देवियों के 9 बीज मंत्र
 
दिन देवी मंत्र पहला दिनशैलपुत्रीह्रीं शिवायै नम:।दूसरा दिनब्रह्मचारिणीह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।तीसरा दिनचन्द्रघण्टाऐं श्रीं शक्तयै नम:।चौथा दिनकूष्मांडाऐं ह्री देव्यै नम:।पांचवा दिनस्कंदमाताह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।छठा दिनकात्यायनीक्लीं श्री त्रिनेत्राय नम:।सातवाँ दिनकालरात्रिक्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।आठवां दिनमहागौरीश्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:।नौवां दिनसिद्धिदात्रीह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।
 
 
*धर्म ज्ञान चर्चा के लिए मुझे सम्पर्क कर सकते हैं*
 
 
 
 
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