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महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है कैसे करें शिव की पूजा और व्रत कथा आओ जानें*

February 20, 2020 09:19 PM
*महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है कैसे करें शिव की पूजा और व्रत कथा आओ जानें* 
शिव रात्रि को शिव भगवान के जन्म के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद चल रहा था। तब उनके विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए। 
*एक दूसरी मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए भी ये दिन खास है।*
साल में आती है 12 शिवरात्रि: 
एक साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं यानी कि हर महीने में एक शिवरात्रि। साल में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि का सबसे अधिक महत्व माना जाता है। इसके बाद सावन में आने वाली बड़ी शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। शिवरात्रि व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। माना जाता है कि शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव एक लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए शिवरात्रि की पूजा रात को करने का विशेष महत्व होता है।
 
*महाशिवरात्रि की कथा*
 शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
 
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
 
चूंकि यह फाल्गुन के महीने का 14 वां दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
 
 *महा शिवरात्रि 21 फरवरी पर 28 साल बाद बनरहा है विष योग :-*
शिवरात्रि को शनि के साथ चंद्रमा भी रहेगा। शनि-चंद्र की युति की वजह से विष योग बन रहा है। इस साल से पहले करीब 28 साल पहले शिवरात्रि पर विष योग बना था। इस योग में शनि और चंद्रमा के लिए विशेष पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पर ये योग बनने से इस दिन शिव पूजा का महत्व और अधिक बढ़ गया है। कुंडली में शनि और चंद्र के दोष दूर करने के लिए शिव पूजा करने की सलाह दी जाती है । शिवरात्रि के पावन पर्व में शिव मंदिरों की रौनक खूब दिखती है। प्रातःकाल से ही शिव मंदिरों में भक्तों का तांता जुटने लगता है। सभी भगवान शिव के मंत्र ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हैं। इस दिन शिव जी को दूध और जल से अभिषेक कराने की भी प्रथा है।
 
*शिव की पूजा में इन चीजों का इस्तेमाल करना है वर्जित.*
 शिव जी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। ये अपने भक्तों की बस भक्ति देखते हैं। महाशिवरात्रि पर भक्त इन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। इनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन धार्मिक मान्यता अनुसार कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका शिव की पूजा में कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन चीजों के उपयोग करने से शिव नाराज हो जाते हैं। जानिए वो कौन सी चीजे हैं
 
*महाशिवरात्रि की पूजन सामग्री* (
महाशिवरात्रि के व्रत से एक दिन पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लें, जो इस प्रकार है: शमी के पत्ते, सुगंधित पुष्‍प, बेल पत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्‍ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पंच मिष्‍ठान, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, दक्षिणा, पूजा के बर्तन आदि.
 
*इसलिए शिव की पूजा में भस्म का होता है प्रयोग*
भस्म: भगवान शिव ने भस्म को पवित्र माना है। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। एक कथा के अनुसार शिव की पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो क्रोधित शिव ने उनकी भस्म को उनकी आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया। शिव के अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रह जाता। उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं।
 
*महाशिवरात्रि पूजा विधि*
महाशिवरात्रि का पावन त्योहार हिंदू धर्म के लोगों के लिए काफी खास होता है। इस दिन भक्त व्रत रख भगवान शिव की अराधना करते हैं। सुबह से ही शिव के मंदिरों में भक्तों का तांता लगना शुरू हो जाता है। लोग भिन्न भिन्न चीजों से शिव का अभिषेक करते हैं। इस बार महाशिवरात्रि पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा। 
 इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें क्या अर्पित करें…
 
शिवरात्रि व्रत से एक दिन पहले यानी त्रयोदशी तिथि को भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। फिर शिवरात्रि के दिन रोजाना के कार्यों से फ्री होकर भक्तों को व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शिवरात्रि की पूजा शाम के समय या फिर रात्रि में करने का विधान है इसलिए भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पूजा रात्रि के समय एक बार या फिर चार बार की जा सकती है। व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के बीच के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए। लेकिन, एक अन्य मान्यता के अनुसार, व्रत के समापन का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात् का बताया गया है।
 
जानिए क्यों अलग है शिव की वेशभूषा और क्या है इसका रहस्य...
भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता माने जाते हैं। इन्हें भोलेनाथ, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि अनेकों नामों से जाना जाता है। अन्य देवों में शिव को भिन्न माना गया है और इसी तरह इनकी वेशभूषा भी सबसे अलग है। बाकी देवताओं की तरह न तो इनके सिर पर कोई मुकुट है न तन पर कोई खास तरह के आभूषण। ये संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। इनकी जटाओं में चंद्र तो मस्तक पर तीसरी आंख है। तो वहीं गले में सर्प सुशोभित है। शिव की उपासना का पर्व महाशिवरात्रि (21 फरवरी 2020) आने वाला है।इस खास मौके पर जानिए आखिर शिव के इन प्रतीकों का क्या रहस्य है। 
 
शिव पूजा के समय किन बातों का रखें ध्यान?
भगवान शिव की पूजा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे भगवान शिव की आधी परिक्रमा लगाई जाती है। ध्यान रखें कि शिवलिंग के बाईं तरफ से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए और जहां से भगवान को चढ़ाया जल बाहर निकलता है, वहां से वापस लौट आएं। उसे कभी भी लांघना नहीं चाहिए। फिर विपरित दिशा में जाकर जलाधारी के दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें। जानिए और किन चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है
 
भगवान शिव की इन अष्ट मूर्तियों को इन्हीं 8 मंत्रों से पुष्पांजलि दें-
ॐ शर्वायक्षितिमू‌र्त्तये नम:।
ॐ भवायजलमू‌र्त्तये नम:।
ॐ रुद्रायअग्निमू‌र्त्तये नम:।
ॐ उग्रायवायुमू‌र्त्तये नम:।
ॐ भीमायआकाशमू‌र्त्तये नम:।
ॐ पशुपतयेयजमानमू‌र्त्तये नम:।
ॐ महादेवायसोममू‌र्त्तये नम:।
ॐ ईशानायसूर्यमू‌र्त्तये नम:।
 
इस महाशिवरात्रि शिव की पूजा से शनि दोष से भी मिलेगी मुक्ति
शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है। ये सभी को कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। कहा जाता है कि शनि साढ़े साती या ढैय्या हमेशा दुख ही दे ऐसा नहीं है। अगर आपके कर्म अच्छे हैं और शनि आपकी कुंडली में मजबूत स्थिति में विराजमान हैं तो शनि के आप पर अच्छे प्रभाव ही देखने को मिलेंगे। लेकिन जिस जातक की कुंडली में शनि की स्थिति अच्छी नहीं है उसे जीवन में कई कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन शनि को एक तरीके से आप आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं वो तरीका है शिवजी की अराधना। माना जाता है शनि शिव के भक्त हैं इसलिए वो इनके भक्तों को कभी नहीं सताते। जानिए महाशिवरात्रि पर शिव जी अराधना से कैसे शनिदेव होंगे प्रसन्न…
 
*इन ग्रह योगों में मनाई जाती है शिवरात्रि...*
जब सूर्य कुंभ राशि और चंद्र मकर राशि में होता है, तब फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। 21 फरवरी की शाम 5.36 बजे तक त्रयोदशी तिथि रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू हो जाएगी। शिवरात्रि रात्रि का पर्व है और 21 फरवरी की रात चतुर्दशी तिथि रहेगी, इसलिए इस साल ये पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा।
 
*महाशिवरात्रि व्रत रखने की विधि...*
शिवरात्रि के एक दिन पहले, मतलब त्रयोदशी तिथि के दिन, भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन भक्तगणों को पूरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान शिव से व्रत को निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने हेतु आशीर्वाद मांगना चाहिए। शिवरात्रि के दिन भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करना चाहिए या मन्दिर जाना चाहिए। भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के मध्य के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए।
 
 
शिव शंकर के प्रभावशाली मंत्र...
शिव एकादशाक्षरी मंत्र:
ओम नम: शिवाय शिवाय नम:। पूजा के बाद इस मंत्र का अधिक से अधिक बार जाप करने से वर्ष भर आप पर शिव कृपा बनी रहेगी।
 
शिव स्तुति मंत्र:
ओम नम: श्म्भ्वायच मयोंभवायच
नम: शंकरायच मयस्करायच
नम: शिवायच शिवतरायच।।
 
 
इस दुर्लभ योग की वजह से खास है ये महाशिवरात्रि...
इस बार महाशिवरात्रि पर अद्भुत संयोग बन रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना हुआ है। सर्वार्थ सिद्धि योग 21 फरवरी को सुबह 09 बजकर 14 मिनट से बन रहा है, जो 22 फरवरी को सुबह 06 बजकर 54 मिनट तक है। वहीं, ज्योतिष के अनुसार, इस बार शिवरात्रि पर शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में होगा और शनि मकर में। यह एक दुर्लभ योग है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा उत्तम मानी गई है।
 
*महाशिवरात्रि पर शिव को प्रसन्न करने के लिए राशि अनुसार करें पूजन...*
महाशिवरात्रि साल में आने वाली सभी 12 शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए खास होती है लेकिन इस महाशिवरात्रि का सबसे अधिक महत्व माना गया है जो साल में एक ही बार आती है। मान्यता है कि इस फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आधी रात में भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। जिस कारण इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। जानिए इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए राशि अनुसार क्या उपाय करें…
 
 
*क्या है रुद्राभिषेक करने का सही तरीका...*
मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना अच्छा माना गया है। घर में भी शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जा सकता है। सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति पाने के लिए शिवलिंग का जल से रुद्राभिषेक करना चाहिए। भगवान के शिव स्वरूप का ध्यान करें। तांबे के बर्तन में शुद्ध जल भरकर इस पर कुम्कुम का तिलक लगाएं। ॐ इंद्राय नमः का उच्चारण करते हुए अभिषेक वाले पात्र पर मौली बांधें। शिव के पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद शिवलिंग पर जल की पतली धार से रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक के दौरान शिव के दूसरे मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं या रुद्राष्टाध्यायी के पांचवे अध्याय का भी पाठ कर सकते हैं। इसके अलावा रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री का ग्यारह आवृति पाठ किया जा सकता है।। 
 
*धर्म ज्ञान चर्चा के लिए मुझे सम्पर्क कर सकते हैं*
 
 
 
 
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