*मैं हूँ पत्रकार*
सुबह सुबह निकलता हूं मैं अपनी कलम उठा कर इसलिए पत्रकार कह लाता हूं।।
समाज की है जो समस्याएं आईना बनकर उनको सबके सामने लाता हूं ।।
सरकार को हम ही बनाते हैं सरकार हम ही गिराते हैं फिर भी हमारा कोई महत्व नहीं इस समाज में बस गुमनामी की जिंदगी ही जिए जाता हूं।।
घर में करे इंतजार हमारा कोई मगर मैं तो समाज के लिए ही जिए जाता हूं ।।
कलम और कैमरा ही है जिंदगी हमारी बस उसको ही लिए जाता हूं ।।
सच्चाई अगर लिखें हम तो सबके दुश्मन बनते जाते हैं
मगर ना जाने क्यों फिर भी हमारे घर के चूल्हे तक नहीं जल पाते हैं।।
करें अगर हम किसी चैनल में काम तो चैनल के एसी रूम में बैठकर मालिक द्वारा हमें आदेश दिए जाते हैं ।।
समाचार पत्र में कार्य करें तो अगर मांगे किसी से विज्ञापन हम तो हम ही हैं वो जो ब्लैकमेलर कहलवाते हैं।।
जनून होता है हम मे कुछ कर जाने का तो क्यों हमे दबाया जाता है।
फिर भी क्यों नही एक पत्रकार समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बन पाता है।।
क्या है जिंदगी पत्रकार की यह मेरा एक सवाल है।।
या पत्रकार बनकर हम ने अपनी जिंदगी को गुमनामी की और मोड़ दिया क्या यही दुनिया का ख्याल है।।।
*चन्द्र अग्रवाल (संपादक)
प्रैस लिंक समाचार पत्र*
की कलम से