*माघी पूर्णिमा*
🏻 *ऐसे तो माघ की प्रत्येक तिथि पुण्यपर्व है, तथापि उनमें भी माघी पूर्णिमा का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्व है । इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर भगवत्पूजन, श्राद्ध तथा दान करने का विशेष फल है । माघी पूर्णिमा के दिन तिल, सूती कपडे, कम्बल, रत्न, पगडी, जूते आदि का अपने वैभव के अनुसार दान करके मनुष्य स्वर्गलोक में सुखी होता है । ‘मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है । (मत्स्यपुराण ५३ । ३५)*
*विशेष - 09 फरवरी 2020 रविवार को माघी पूर्णिमा है।*
🏻 *धर्म शास्त्रों में पूर्णिमा तिथि को विशेष फलदाई माना गया है। उन सभी पूर्णिमाओं में माघी पूर्णिमा (इस बार 09 फरवरी, रविवार) का महत्व कहीं अधिक है। पुराणों के अनुसार, इस दिन विशेष उपाय करने से धन की देवी मां लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं। और भी कई उपाय इस दिन करने से शुभ फल मिलते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं-*
➡ *1. माघी पूर्णिमा माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए विशेष तिथि मानी गई है। इस पूर्णिमा की रात लगभग 12 बजे महालक्ष्मी की भगवान विष्णु सहित पूजा करें एवं रात को ही घर के मुख्य दरवाजे पर घी का दीपक लगाएं। इस उपाय से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर उस घर में निवास करती हैं।*
➡ *2. माघी पूर्णिमा की सुबह पास के किसी लक्ष्मी मंदिर में जाएं और 11 गुलाब के फूल अर्पित करें। इससे माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु की कृपा भी आपको प्राप्त होगी और अचानक धन लाभ के योग भी बनेंगे।*
➡ *3. मंगलवार की शाम किसी लक्ष्मी मंदिर में जाकर लक्ष्मी प्रतिमा के सामने 7 पीली कौड़ियां रखें। रात 12 बजे के बाद इन्हें अपने घर के किसी कोने में गाड दें। इससे जल्दी ही धन संबंधी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी।*
➡ *4. माघी पूर्णिमा की सुबह पूरे विधि-विधान से माता सरस्वती की भी पूजा की जाती है। इस दिन माता सरस्वती को सफेद फूल चढ़ाएं व खीर का भोग लगाएं। विद्या, बुद्धि देने वाली यह देवी इस उपाय से विशेष प्रसन्न होती हैं।*
➡ *5. पितरों के तर्पण के लिए भी यह दिन उत्तम माना गया है। इस दिन पितरों के निमित्त जलदान, अन्नदान, भूमिदान, वस्त्र एवं भोजन पदार्थ दान करने से उन्हें तृप्ति होती है। जोड़े सहित ब्राह्मणों को भोजन कराने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है।*
➡ *6. वैसे तो सभी पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की पूजा होती है किंतु माघ मास की पूर्णिमा पर इसका महत्व बढ़कर बताया गया है। शाम को भगवान सत्यनारायण की पूजा कर, धूप दीप नैवेद्य अर्पण करें। भगवान सत्यनारायण की कथा सुनें।*
➡ *7. माघी पूर्णिमा पर दान का भी विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन जरूरतमंदों को तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न आदि का दान करना चाहिए।*
*माघी पूर्णिमा*
🏻 *(09 फरवरी, रविवार) माघ मास की पूर्णिमा है। धर्म ग्रंथों में इसे माघी पूर्णिमा कहा गया है। इस पूर्णिमा पर संयम से रहना, सुबह स्नान करना एवं व्रत, दान करना आदि नियम बताए गए हैं। इस समय शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। इसलिए इस समय व्रत करने से शरीर रोगग्रस्त नहीं होता एवं आगे आने वाले समय के लिए सकारात्मकता प्राप्त होती है।*
🏻 *माघी पूर्णिमा की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। फिर पितरों का श्राद्ध कर निशक्तजनों को भोजन, वस्त्र, तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, जूते, फल, अन्न आदि का दान करें। इस दिन सोने एवं चांदी का दान भी किया जाता है। गौ दान का विशेष फल प्राप्त होता है।*
🏻 *इसी दिन संयमपूर्वक आचरण कर व्रत करें। इस दिन ज्यादा जोर से बोलना या किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए। गृह क्लेश से बचना चाहिए। गरीबों एवं जरुरतमंदों की सहायता करनी चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपके द्वारा या आपके मन, वचन या कर्म के माध्यम से किसी का अपमान न हो। इस प्रकार संयमपूर्वक व्रत करने से व्रती को पुण्य फल प्राप्त होते हैं।*
*पीतल के बर्तन क्यों इस्तेमाल करने चाहिए घर में आओ जानें*
पीतल के बर्तन घर में रखना शुभ माना जाता है। सेहत की दृष्टि से पीतल के बर्तनों में बना भोजन स्वादिष्ट तुष्टि-प्रदाता होता है तथा इससे आरोग्य और शरीर को तेज प्राप्त होता है। पीतल का बर्तन जल्दी गर्म होता है जिससे गैस तथा अन्य ऊर्जा की बचत होती है। पीतल के बर्तन दूसरे बर्तन से ज्यादा मजबूत होते हैं। पीतल के कलश में रखा जल अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है।
पीतल अथवा ब्रास एक मिश्रित धातु है। पीतल का निर्माण तांबा व जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है। पीतल शब्द पीत से बना है तथा संस्कृत में पीत का अर्थ पीला होता है तथा धार्मिक दृष्टि से पीला रंग भगवान विष्णु को संबोधित करता है। सनातन धर्म में पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है। वेदों के खंड आयुर्वेद में पीतल के पात्रों को भगवान धन्वंतरि का अतिप्रिय बताया गया है। शास्त्र महाभारत में वर्णित एक वृत्तांत के अनुसार सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि जब तक द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दे, खाना घटता नहीं था।
पीतल के पात्रों का महत्व ज्योतिष व धार्मिक शास्त्रों में भी बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सुवर्ण व पीतल की ही भांति पीला रंग देवगुरु बृहस्पति को संबोधित करता है तथा ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार पीतल पर देवगुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है। बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह शांति व ज्योतिष अनुष्ठानों में दान हेतु भी पीतल के बर्तन दिए जाते हैं।
पीतल के बर्तनों का कर्मकांड में अत्यधिक महत्व है। वैवाहिक कार्य में वेदी पढ़ने हेतु व कन्यादान के समय पीतल का कलश प्रयोग किया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने हेतु भी पीतल के कलश का उपयोग किया जाता है तथा बगलामुखी देवी के अनुष्ठानों में मात्र पीतल के बर्तन ही प्रयोग लिए जाते हैं।
भारत के कई क्षेत्रों में आज भी सनातनधर्मी जन्म से लेकर मृत्यु के उपरांत तक पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। स्थानिक मान्यताओं के अनुसार बालक के जन्म पर नाल छेदन करने के उपरांत पीतल की थाली तो छुरी से पीटा जाता है। मान्यता है कि इससे पितृगण को सूचित किया जाता है कि आपके कुल में जल और पिंडदान करने वाले वंशज का जन्म हो चुका है। मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि क्रिया के 10वें दिन अस्थि विसर्जन के उपरांत नारायणवली व पीपल पर पितृ जलांजलि मात्र पीतल कलश से दी जाती है। मृत्यु संस्कार के अंत में 12वें दिन त्रिपिंडी श्राद्ध व पिंडदान के बाद 12वीं के शुद्धि हवन व गंगा प्रसादी से पहले पीतल के कलश में सोने का टुकड़ा व गंगा जल भरकर पूरे घर को पवित्र किया जाता है।
पीतल के बर्तन घर में रखना शुभ माना जाता है। सेहत की दृष्टि से पीतल के बर्तनों में बना भोजन स्वादिष्ट तुष्टि-प्रदाता होता है तथा इससे आरोग्य और शरीर को तेज प्राप्त होता है। पीतल का बर्तन जल्दी गर्म होता है जिससे गैस तथा अन्य ऊर्जा की बचत होती है। पीतल का बर्तन दूसरे बर्तनों से ज्यादा मजबूत और जल्दी न टूटने वाला धातु है। पीतल के कलश में रखा जल अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है।
पीतल पीले रंग का होने से हमारी आंखों के लिए टॉनिक का काम करता है। पीतल का उपयोग थाली, कटोरे, गिलास, लोटे, गगरे, हंडे, देवताओं की मूर्तियां व सिंहासन, घंटे, अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र, ताले, पानी की टोंटियां, मकानों में लगने वाले सामान और गरीबों के लिए गहने बनाने में होता है।
1. भाग्योदय हेतु पीतल की कटोरी में चना दाल भिगोकर रातभर सिरहाने रखें व सुबह चना दाल पर गुड़ रखकर गाय को खिलाएं।
2. अटूट धन प्राप्ति हेतु पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण पर शुद्ध घी से भरा पीतल का कलश चढ़ाकर निर्धन विप्र को दान करें।
3. लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु वैभवलक्ष्मी का पूजन कर पीतल के दीये में शुद्ध घी का दीपक करें।
4. दुर्भाग्य से मुक्ति पाने हेतु पीतल की कटोरी में दही भरकर कटोरी समेत पीपल के नीचे रखें।
5. सौभाग्य प्राप्ति हेतु पीतल के कलश में चना दाल भरकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं।
*नोट:– पीतल के बर्तन में खट्टे पदार्थ कभी भी न रखें।*
*ज्योतिष परामर्श जन्म कुंडली दिखाने के लिए मुझे सम्पर्क कर सकते हैं*