*कुंडली मिलान में क्या है अष्टकूट मिलान आओ जानें*
Astrologer receptor
वर्णों वश्यं तथा तारा योनीश्च गृह मैत्रकम |
गण मैत्रं भकूटश्च नाडी चैते गुणाधिका ||
[ मुहूर्त चिंतामणि ]
1. वर्ण 2. वश्य 3, तारा 4. योनि 5. ग्रह मैत्री 6. गण 7. भकूट 8.नाडी ये आठ अष्टकूट हैं जिनका विचार मिलान में किया जाता है | क्रम संख्या के अनुसार ही इनके गुण होते हैं |जैसे वर्ण का क्रम एक है तो गुण भी एक होगा ,योनि का क्रम चार है तो गुण भी चार ही होंगे |इस प्रकार क्रमानुसार योग करने पर अष्टकूटोँ के कुल गुण 1+2+3+4+5+6+7+8=36 गुण होते हैं |
वर्ण विचार |
कर्क, वृश्चिक और मीन राशियों का ब्राह्मण मेष, सिंह और धन राशियों का क्षत्रिय, वृष, कन्या और मकर राशियों का वैश्य और मिथुन , तुला, कुम्भ राशियां शुद्र वर्ण में आती हैं. वर तथा कन्या के वर्ण से उच्च स्तरीय अथवा समान वर्ण होने पर एक गुण मिलता है यदि दोनो में से कोई भी मिलान नहीं हो तो शून्य गण होगा.
यदि वर की राशि का वर्ण कन्या की राशि वर्ण से हीन हो परंतु राशि का स्वामी उत्तम वर्ण का हो तो वर्ण मिलान शुभ माना जाता है.
वश्य विचार |
इसमें 12 राशियों को पाँच अलग-अलग भागों में बाँटा गया है. मिथुन, कन्या, तुला तथा धनु राशि का 0 से 15 डिग्री तक का पहला भाग, कुम्भ राशि द्विपद है.
मेष, वृष, धनु का 15 डिग्री से 30 डिग्री तक का बाद का भाग, मकर का 0 से 15 डिग्री तक का पहला भाग चतुष्पाद में आता है. कर्क, मकर राशि का 15 से 30 डिग्री तक का बाद का भाग, मीन राशि जलचर में आती है.
सिंह राशि वनचर में आती है और वृश्चिक राशि कीट मानी जाती है. इस मिलान को 2 अंक प्रदान किए गए हैं. लड़के तथा लड़की का एक ही वश्य होने पर दो अंक मिलते हैं. एक वश्य और दूसरा शत्रु होने पर एक ही अंक मिलता है. एक वश्य और एक भक्षक होने पर आधा अंक मिलता है. एक शत्रु और एक भक्षक होने पर कोई अंक नहीं मिलता.
तारा मिलान |
तारा मिलान तीसरे स्थान पर आता है. इसके तीन अंक होते हैं. इस मिलान में वर तथा कन्या के जन्म नक्षत्रों का एक-दूसरे से आंकलन किया जाता है. वर के नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गणना की जाती है. इसी प्रकार कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गणना की जाती है. दोनो संख्याओं को को अलग - अलग 9 से भाग किया जाता है और शेष में यदि 3, 5 और 7 बचे तो यह अशुभ तारा मानी जाती है. वर-कन्या के दोनों ताराओं में यदि अशुभ तारा हो तो कोई अंक नहीं मिलता. एक में तारा शुभ और दुसरे में अशुभ हो तो डे़ढ़ अंक मिलत अहै ओर यदि दोनों में तारा शुभ हो तो पूरे तीन अंक मिलते हैं.
योनि विचार |
कुण्डली मिलान में अंको के क्रम में इस योनि मिलान को 4 अंक प्राप्त हैं. शास्त्रों में लिखा है कि हम जब जन्म लेते हैं, तब किसी ना किसी योनि को लेकर आते हैं. व्यक्ति के स्वभाव तथा व्यवहार में उसकी योनि की झलक अवश्य दिखाई देती है. नक्षत्रों के आधार पर व्यक्ति की योनि ज्ञात कि जाती है. कई योनियाँ ऎसी हैं जो एक-दूसरे की परम शत्रु होती हैं. जैसे मार्जार (बिल्ली) और मूषक (चूहा), गौ और व्याघ्र यह आपस में महावैर रखते हैं. इनका आपसी तालमेल कभी भी सही नहीं हो सकता है. इसलिए कुण्डली मिलाते समय हमें कोशिश करनी चाहिए कि वर तथा कन्या की योनियों का महावैर नहीं हो.
वर और कन्या की एक ही योनि होना शुभ होता है योनियों में अतिमित्रता हो तो पूरे चार अंक मिलते हैं. मित्र हों तो तीन अंक, सहज प्रकृति समान हो तो दो अंक, सामान्य वैर हो तो एक अंक और अतिशत्रु हों तो कोई अंक नहीं मिलता.
ग्रह मैत्री |
वर तथा वधु की चन्द्र राशियों के स्वामी के आपसि मिलान को ग्रह मैत्री कहा जाता है. वर तथा कन्या की चन्द्र राशियों के स्वामी का आपस में मित्र होना आवश्यक है. दोनों के मित्र होने या एक ही राशि होने पर आपस में विचारों में भिन्नता नहीं रहती है. जीवन की गाडी़ सुचारु रुप से चलाने में सफलता मिलती है. कलह - क्लेश कम होते हैं. दोनों की चन्द्र राशियों के स्वामी यदि आपस में शत्रु भाव रखते हैं तब पारीवारिक जीवन में तनाव रहने की अधिक संभावना रहती है. इस मिलान को पाँच अंक प्रदान किए गए हैं.
वर तथा वधु की एक राशि है या दोनों के राशि स्वामी मित्र है तब पूरे पाँच अंक मिलते हैं.
यदि एक का राशि स्वामी मित्र तथा दूसरे का सम है तब चार अंक मिलते हैं. दोनों के राशि स्वामी सम है तब तीन अंक मिलते हैं. एक की चन्द्र राशि का स्वामी मित्र तथा दूसरे का शत्रु है तब एक अंक मिलता है. एक सम और दूसरा शत्रु है तब आधा अंक मिलता है. यदि दोनों के राशि स्वामी आपस में शत्रु है तब शून्य अंक मिलता है.
गण मिलान |
गण मिलान वर तथा कन्या के जन्म नक्षत्र के आधार पर उनके गणों का निर्धारण किया जाता है. इस मिलान को छह अंक दिए गए हैं. इस मिलान का भी अत्यधिक महत्व माना गया है. यदि आपका गण देव है और आपके साथी का गण राक्षस है तब आप दोनों के व्यवहार में बहुत भिन्नता होगी. इसी भिन्नता के कारण आपका तालमेल जमने में परेशानी हो सकती है. 27 नक्षत्रों को तीन बराबर भागों में बांटा गया है. इस मिलान में देव गण, मनुष्य गण तथा रा़क्षस गण में 27 नक्षत्रों को बाँटा गया है. एक गण में नौ नक्षत्र आते हैं.
देव गण |
इसमें अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुश्य, हस्त, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, रेवती नक्षत्र आते हैं.
मनुष्य गण |
इसमें भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाषाढा़, उत्तराषाढा़, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र आते हैं.
राक्षस गण |
इसमें कृतिका, आश्लेषा, मघा, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा नक्षत्र आते हैं.
वर-कन्या का एक ही गण होने पर छह अंक मिलते हैं विवाह उत्तम माना जाता है. वर का देवग और कन्या का मनुष्य गण हो तो भी छह अंक मिलते है. कन्या का देवगण और वर का मनुष्य गण होने पर पांच अंक मिलते हैं. एक का देव गण और दूसरे का राक्षस गण हो तो कोई अंक नहीं मिलता यह अशुभ माना जाता है.
राशि स्वामियों में परस्पर मित्रता हो या राशि नवांशपति में भिन्नता हो तो गणदोष नहीं माना जाता है.
ग्रह मैत्री तथा वर एवं कन्या के नक्षत्रों की नाड़ियों में भिन्नता हो तो गणदोष होने पर भी गणदोष नहीं माना जाता है.
इसके अतिरिक्त तारा, वश्य, योनि, ग्रह मैत्री तथा भकूट की शुद्धि होने पर कोई दोष नहीं माना जाता.
भकूट विचार |
इसे राशि कूट भी कहा जाता है. इस मिलान में सात अंक मिलते हैं. भकूट मिलान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. यह वर तथा वधु की चन्द्र राशियों पर आधारित है. इसमें वर तथा वधु की कुण्डलियों में परस्पर चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन किया जाता है. वर-कन्या की जन्म राशि परस्पर छठे और आठवें में हो तो षडाष्टक दोष होता है. वर-कन्या की जन्म राशि परस्पर पांचवीं-नौंवी हो तो नव पंचम दोष होता है. यदि दोनों की राशियां परस्पर दूसरी और बारहवीं हो द्विद्वादश दोष बनता है.
वर तथा कन्या की एक ही राशि होने पर पूरे सात अंक मिलते हैं. दोनों के चन्द्रमा एक - दूसरे से परस्पर 1/7, 3/11 अथवा 4/10 अक्ष पर स्थित है तब भी सात अंक मिलते हैं. वर तथा वधु का चन्द्रमा एक - दूसरे से 2/12, 5/9 अथवा 6/8 अक्ष पर स्थित होने पर शून्य अंक मिलता है.
नवपंचम दोष में कन्या का चन्द्रमा वर के चन्द्र से पंचम है तो ज्यादा खराब है. वर सांसारिकता से विमुख हो सकता है. यदि दोनों में ग्रह मेत्री है तो कुछ ठीक है. यदि कन्या का चन्द्र वर के से नवम भाव में आ रहा है तब कन्या संसार को त्याग सकती है.
षडाष्टक योग में वर तथा वधु के चन्द्र राशियों के स्वामी भी आपस में शत्रुता रखते हैं तब परेशानी और बढ़ सकती हैं. घर में किसी ना किसी रुप में बाधा आती रहती है. धन संबंधी परेशानी व्यक्ति को आये दिन रहती है. अचानक होने वाली घटनाओं का सामना करना पड़ता है. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रु किसी ना किसी रुप में परेशान कर सकते हैं.
नाडी़ दोष विचार
वर तथा वधु की कुण्डलियों में उनके जन्म नक्षत्र के आधार पर उनकी नाड़ियों का वर्गीकरण किया जाता है. नक्षत्रों को तीन भागों में बांटा जाता है. आदि, मध्या तथा अन्त्या नाडी़ ही नाडी़ मिलान या नाडी़ दोष कहलाता है. इसमें वर तथा वधु की नाडी़ एक ही होने पर दोष माना जाता है.
नाडी़ मिलान को सबसे अधिक आठ अंक दिए गए हैं. स्त्री तथा पुरुष की एक ही नाडी़ नहीं होनी चाहिए.
गुण मिलान के क्रम में नाडी़ दोष अंतिम होता है. यह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण मिलान जाना जाता है. इस मिलान को सर्वाधिक आठ अंक दिए गए हैं. इस मिलान के विषय में शास्त्रों में बहुत से मत दिए गए हैं कि यह क्यों आवश्यक है. कई मतानुसार इस मिलान को संतान प्राप्ति के अवश्यक माना जाता है. कई विद्वानों यह भी मत है कि वर तथा वधु की एक सी नाडी़ होने पर उनके भीतर के छिपे कुछ रोग उनकी संतान में प्रकट हो सकते हैं.
नाडी़ मिलान में एक नाडी़ नहीं होनी चाहिए. यदि एक ही नाडी़ है लेकिन नक्षत्र भिन्न हैं तब विवाह कर सकते हैं. जैसे वर तथा वधु की मिथुन राशि होने से उन दोनों की आदि नाडी़ होती है. लेकिन मिथुन राशि में एक का आर्द्रा तथा दूसरे का पुनर्वसु नक्षत्र होने से नाडी़ दोष नहीं होगा. कई विद्वानों का मत है कि एक नक्षत्र होने पर यदि उनके चरण भिन्न है तब भी नाडी़ दोष नहीं होता है. नाडी़ दोष के अन्तर्गत यदि पुरुष का नक्षत्र स्त्री के नक्षत्र से अगला ही है, तब इसे नृदूर दोष माना जाता है जो नहीं होना चाहिए।।
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