गुप्त नवरात्रि 25 जनवरी से 3 फरवरी तक, और विष्णु भगवान के सुदर्शन चक्र की उत्पत्ति कैसे हुई थी आओ जानें*
Astrologer receptor
*25 जनवरी से गुप्त नवरात्रि प्रांरभ, दस महाविद्याओ की साधना होगी*
गुप्त नवरात्रि माघ मास शुक्ल पक्ष से प्रारंभ हो रहे हैं, (25 जनवरी 2020 शनिवार से 03 फरवरी 2020 सोमवार तक)
*गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।*
भगवान विष्णु शयन काल की अवधि के बीच होते हैं तब देव शक्तियां कमजोर होने लगती हैं। उस समय पृथ्वी पर रुद्र, वरुण, यम आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है इन विपत्तियों से बचाव के लिए गुप्त नवरात्र में मां दुर्गा की उपासना की जाती है ,
*आप अपने घर में गुप्त नवरात्रि में पूजा पाठ,हवन यज्ञ कराने के लिए मुझे सम्पर्क कर सकते हैं।*
*पति प्राप्ति के लिये मन्त्र-*
कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि !
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:...मंत्र से दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राहमण से करवाऐ माता से प्रार्थना करें हे माँ मै आपकी शरण में आ गयी मुझे शीघ्र अति शीघ्र सौभाग्य की प्राप्ति हो और मेरी मनोकामना शीघ्र पुरी हो माँ भगवती कि कृपा से अवश्य सफलता प्राप्त होगी
*पत्नी प्राप्ति के मंत्र*
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्।
तारिणींदुर्गसं सारसागरस्य कुलोद्भवाम......माँ दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राह्मण से करवाऐ आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी.!
*शत्रु पर विजय ओर शांति प्राप्ति के लिए*
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्....!
*बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्रादि प्राप्ति के लिएः* सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः। मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय..!
*भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की उतपत्ति कैसे हुई*
एक बार नारायण; जिन्हें हम भगवान विष्णु भी कहते हैं; मैंने सोचा कि वह अपने देवताओं देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें एक हजार कमल के पुष्प अर्पित करेंगे। पूजा की सारी सामग्री एकत्र करने के बाद उन्होंने अपना आसान तरीका अपनाया। और आंखे बंद कर के संकल्प को प्रभावित करें। और अनुष्ठान शुरू किया।
वास्तविकता में शिव जी के मित्र नारायण हैं, और नारायण के शिव शिव जी हैं।
किंतु आज इस क्षण भगवान शंकर भगवान की भूमिका में थे और भगवान नारायण भक्त की। भगवान शिव शंकर को एक ठिठोली सूजी। उन्होंने चुपचाप सहस्त्र कमलो में से एक कमल चुरा लिया। नारायण अपने परिवार की भक्ति में लीन थे। उन्हें इस बारे में कुछ भी पता नहीं चला। जब नौ सौ निन्यानवे कमल चढ़ाने के बाद नारायण ने एक हजारवें कमल को चढ़ाने के लिए थाल में हाथ डाला तो देखा कमल का फूल नहीं था।
कमल पुष्प लाने के लिए न तो वे स्वयं उठ कर कर सकते थे न किसी को बोलकर मंगवा सकते थे। क्यों की शास्त्र मर्यादा है की भगवान की पूजा या कोई अनुष्ठान करते समय न तो बीच में से उठा जा सकता है न ही किसी से बात की जा सकती है। वो चाहते हैं तो अपनी माया से कमल के पुष्पों का ढेर थाल में प्रकट कर लेते हैं लेकिन उस समय इस भगवान नहीं बल्कि अपने परिवार के भक्त के रूप में थे। अतः वे अपनी शक्तियों का उपयोग अपनी भक्ति में नहीं करना चाहते थे।
नारायण ने सोचा कि लोग मुझे कमल नयन बोलते हैं। और तब नारायण ने अपनी एक आंख शरीर से निकालकर शिव जी को कमल पुष्प की तरह अर्पित कर दी। और अपना अनुष्ठान पूरा किया।
नारायण का सोपानन देखकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए, उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु निकल पड़े। इतना ही नहीं, नारायण के इस त्याग से शिव जी मन से ही नहीं बल्कि शरीर से भी पिघल गए। और चक्र रूप में परिवर्तित हो गए। ये वही चक्र है जो नारायण हमेशा धारण किये रहता है। तब से नारायण समान चक्र अपने दाहिने हाथ की तर्जनी में धारण करते हैं। और इस तरह नारायण और शिव हमेशा एक दूसरे के साथ रहते हैं।।
*धर्म ज्ञान चर्चा के लिए*