*सूतक और ग्रहण में मंदिर क्यों नहीं खुलते,और क्यों नहीं करते भोजन, गर्भवती महिलाओं के लिए क्यों होता है ग्रहण देखना वर्जित आओ जानें*
Astrologer receptor
*सूर्य ग्रहण 26 दिसंबर को प्रातः 08:04 मिनट से 11 बजकर 5 मिनट तक रहेगा*
ग्रहण से जुड़ी जो सबसे बड़ी धारणा है, वह है सूतक। ग्रहण के सूतक के नाम पर गर्भवती महिलाओं का घर से बाहर आना-जाना अवरुद्ध कर दिया जाता है। यहां तक कि सूतक के कारण मन्दिरों के भी पट बंद कर दिए जाते हैं।
ग्रहणकाल में भोजन पकाना एवं भोजन करना वर्जित माना गया है। ग्रहण के मोक्ष अर्थात् ग्रहणकाल के समाप्त होते ही स्नान करने की परम्परा है।
यहां हम स्पष्ट कर दें कि इन सभी परम्पराओं के पीछे मूल कारण तो वैज्ञानिक है, शेष उस कारण से होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए देश-काल-परिस्थिति अनुसार लोक नियम।
*किसी भी नियम को स्थापित करने के पीछे मुख्य रूप से दो बातें प्रभावी होती हैं, पहली-भय और दूसरी-लोभ; लालच। इन दो बातों को विधिवत् प्रचारित कर आप किसी भी नियम को समाज में बड़ी सुगमता से स्थापित कर सकते हैं। धर्म में इन दोनों बातों का समावेश होता है।*
आज की युवा पीढ़ी रुढ़बद्ध नियमों को स्वीकार करने में झिझकती है। यही बात ग्रहण से सन्दर्भ में शत-प्रतिशत लागू होती है। आज की पीढ़ी को 'सूतक' के स्थान पर सीधे-सीधे यह बताना अधिक कारगर है कि ग्रहण के दौरान चन्द्र व सूर्य से कुछ ऐसी किरणें उत्सर्जित होती हैं जिनके सम्पर्क में आ जाने से हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और यदि ना चाहते हुए भी इन किरणों से सम्पर्क हो जाए तो स्नान करके इनके दुष्प्रभाव को समाप्त कर देना चाहिए। इन्हीं किरणों से भोजन भी दूषित हो जाता है। अत: उससे भी बचा जाता है। वर्तमान समय में ग्रहण का यही अर्थ अधिक स्वीकार व मान्य प्रतीत होता है।
*मन्दिरों के पट बन्द करने के पीछे भी मुख्य उद्देश्य यही है*
क्योंकि जनमानस में नियमित मन्दिर जाने को लेकर एक प्रकार का नियम व श्रद्धा का भाव होता है। अतः जिन श्रद्धालुओं का नियमित मन्दिर जाने का नियम है उन्हें ग्रहण के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए मन्दिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं।
*ग्रहण के दौरान खाना पीना इसलिए वर्जित है*
ग्रहण के समय यूं तो कई कार्य वर्जित माने गए हैं लेकिन भोजन करने पर सख्त मनाही है। कहा जाता है कि चंद्र ग्रहण हो या फिर सूर्य ग्रहण मनुष्य जितने भी दाने ग्रहण करता है, उसे उतने ही वर्षों तक नरक भोगना पड़ता है। हालांकि बुजुर्ग, बालक और रोगियों को लेकर यहां पर भी नियमों में कुछ छूट बताई गई है।
ग्रहण के समय भोजन क्यों नहीं करना चाहिए? और यदि भोजन कर लिया जाए तो उसके क्या परिणाम होते हैं?
1
नष्ट हो जाते हैं सारे पुण्य
सनातन धर्म में ग्रहण कोई भी हो यानी कि चाहे सूर्य ग्रहण हो या फिर चंद्र और उसकी अवधि आंशिक हो या पूर्ण उसे अशुभ ही माना गया है। यही वजह है कि ग्रहण के दौरान भोजन करने की सख्त मनाही है। स्कंद पुराण के अनुसार, यदि ग्रहण के समय किसी दूसरे व्यक्ति का भोजन किया जाता है तो मनुष्य के सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
2
इन्हें मिली है एक प्रहर की रियायत
यूं तो सूर्य ग्रहण के दौरान किसी को कुछ भी खाने की मनाही है लेकिन बुजुर्ग, बालक और रोगी को इसमें छूट दी गई है। लेकिन कहा जाता है कि उक्त तीनों यानी कि बुजुर्ग, बालक और रोगी सूर्य ग्रहण से एक प्रहर पूर्व यानी कि 3 घंटे पूर्व भोजन कर सकते हैं।
3
तेजी से फैलते हैं कीटाणु
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ग्रहण काल में कीटाणु बहुत ही तेजी से फैलते हैं। ऐसे में उस दौरान किया गया भोजन विष बन जाता है। इससे इस जन्म में तो शरीर को कई तरह की बीमारियों का सामना करना ही पड़ता है। साथ ही अगले जन्म में भी उसे कई तरह की पीड़ा का भोग करना पड़ता है।
4
जागरुकता हो जाती है नष्ट
मान्यता है कि ग्रहण के दौरान खाया गया भोजन जहर में तब्दील हो जाता है। कारण यह है कि सूर्य का चक्र जो कि 28 दिनों में होता है वह ग्रहण के समय कुछ ही घंटों में घटित हो जाता है। यानी कि ऊर्जा के अर्थों में पृथ्वी की ऊर्जा गलती से इस सूर्य ग्रहण को सूर्य का एक पूरा चक्र समझ लेती है। इससे पृथ्वी पर कोई भी चीज जल्दी खराब होने लगती है। यही वजह है कि खाया हुआ खाना जहर बन जाता है। हालांकि इसे मृत्यु तो नहीं होती, लेकिन इससे शरीर की जागरुकता धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है। यानी कि हमारे शरीर की ऊर्जा तकरीबन 28 दिन कम हो जाती है। यही वजह है कि ग्रहण के दौरान भोजन करने की मनाही है।।
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