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भय नही न्याय के देवता है शनि देव,इनके प्रकोप से बचने के रामबाण उपाय आपके लिये पंडित कृष्ण मेहता बता रहे हैं।

December 04, 2019 09:41 PM
भय नही न्याय के देवता है शनि देव,इनके प्रकोप से बचने के रामबाण उपाय आपके लिये पंडित कृष्ण मेहता बता रहे हैं।
आज शनि देव को कुछ फेसबुकिये पंडितो ने डर का पर्याय बना कर रख दिया है।जबकि शनि देव ड़र दहशत के नही न्याय के देव है।आज पंडित कृष्ण मेहता  आपको बता रहे शनि देव को खुश कैसे करे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि एक मात्र ऐसा ग्रह बताया गया है जो एक साथ पांच राशियों पर सीधा प्रभाव डालता है। एक समय में शनि की तीन राशियों पर साढ़ेसाती और दो राशियों पर ढय्या रहती है। शनिदेव का स्वभाव क्रूर माना गया है और शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के समय में प्रभावित राशि के लोगों को कड़ी मेहनत करना पड़ती है। अभी शनि की साढ़ेसाती कन्या, तुला और वृश्चिक पर है तथा ढय्या कर्क और मीन राशि पर है। यहां जानिए शनि की साढ़ेसाती और ढय्या के दोष दूर करने के रामबाण उपाय. शनि दोष के मानव जीवन पर अच्छे और बुरे दोनों प्रभाव होते है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को ऐसे ग्रह के तौर पर माना जाता है जिसकी चाल अन्य सभी ग्रहों से खतरनाक है। शास्त्रों के अनुसार शनि देव को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति सर्वश्रेष्ठ है। शक्तिशाली है ये मन्त्र: कर्मफलदाता शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शनि मंत्र सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। शनि की साढ़ेसाती हो या फिर ढैया सबके लिए शनि-मंत्र रामबाण उपाय है। शनिवार का दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत शुभ दिन होता है। शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए शास्त्रों में बहुत सारे उपाय बताए गए हैं लेकिन जो शक्ति शनि मंत्र है वह अन्य किसी उपाय में नहीं है।
शनि स्तोत्र :
नमस्ते कोणसंस्थाय पिडगलाय नमोस्तुते।
नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तु ते।।
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चान्तकाय च।
नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।।
नमस्ते यंमदसंज्ञाय शनैश्वर नमोस्तुते।
प्रसादं कुरू देवेश दीनस्य प्रणतस्य च।।
शनि के इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि के सभी दोषों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इससे बेहतर कोई स्तोत्र नहीं है। इस स्तोत्र का कम से कम 11 बार पाठ करना चाहिए।
वैदिक शनि मंत्र :
"ऊँ शन्नोदेवीर भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः"
पौराणिक शनि मंत्र :
"ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।"
तांत्रिक शनि मंत्र :
"ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
   शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार को सूर्योदय से पहले जगकर पीपल की पूजा करने से शनिदेव खुश होते हैं। शनिवार को पीपल के पेड़ में सरसों का तेल चढ़ाने से शनि देव अति प्रसन्न होते हैं। शनिवार को संध्याकाल में इन मंत्रों का जाप करने से शनि का प्रकोप शांत होता है। साथ ही शनिदेव को इस मंत्र से पूजा करने से जो भी शनि की महादशा भी खत्म होती है।
शनि व्रत :
शनिवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करे और 19, 31 या 41 शनिवार तक करे। शनिवार के दिन प्रात: स्नान आदि करके काले रंग की बनियान धारण करे और सरसो के तेल का दान करे तथा तांबे के कलश मे जल, थोडे काले तिल, लोंग, दुध, शक्कर, आदि डाल के पीपल अथवा खेजडी के वृक्ष के दर्शन करते हुये पश्चिम दिशा कि तरफ़ मुख रखते हुये जल प्रदान करे. तथा "ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नम: " इस बिज मंत्र का यथाशक्ति जाप करे। इस दिन भोजन में उडद दाल एवं केले और तेल के पदार्थ बनाये। भोजन से पुर्व भोजन का कुछ भाग काले कूत्ते या भिखारी को दे उसके बाद प्रथम 7 ग्रास उपरोक्त पदार्थ ग्रहण करे बाद में अन्य पदार्थ ग्रहण करे। अंतिम शनिवार को हवन क्रिया के पश्चात यथाशक्ति तील, छ्त्री, जुता, कम्बल, नीला-काला वस्त्र, आदि वस्तुओ का दान निर्धन व्यक्ति को करे। व्रत के दिन जल, सभी प्रकार के फल, दूध एवं दूध से बने पदार्थ या औषध सेवन करने से व्रत नष्ट नहीं होता है। व्रत के दिन एक बार भी पान खाने से, दिन के समय सोने से, स्त्री रति प्रसंग आदि से व्रत नष्ट होता है।
शनि की साडेसाती के लिए :
  प्राचीन ज्योतिष में शनि की बुरी चाल से 3 बड़े चक्कर को साडेसाती कहा जाता है और इस से अलग अढाई वर्ष का ढैया कहा जाता है। शनि लग्न से चतुर्थ या अष्टम भाव में हो तो ढैया होता है एवं द्वादश, लग्न और द्वितीय भाव में शनि आये तो उसे साडेसाती कहा जाता है। शनि साडेसाती के बुरे परिणाम: सांप का डसना, शराब आदि का व्यसनी होना, मकान का बिक जाना या गिर जाना, घर में चोरी होना, पुलिश स्टेशन एवं कोर्ट के चक्कर खाना, वाहन गुम या चोरी हो जाना एवं वाहन का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, फैक्ट्री या मशीनों का बिक जाना या रुक जाना या बंद हो जाना।
शनि साडेसाती और ढैया का उपाय :
ढैया : चतुर्थ भाव में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 4 बोतल शराब नदी में प्रवाहित करे.
अष्टम भाव में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 8 किलो साबुत उड़द नदी में प्रवाहित करे. साडेसाती : द्वादश भाव में शनि हो तो शराब व मांस का सेवन न करे, लग्न में शनि हो तो किसी भी एक शनिवार को 50 ग्राम सुरमा जमीन में दबाये, बन्दर को गुड दे,
द्वितीय भाव में शनि हो तो नंगे पैर मंदिर में दर्शन हेतु जाये। सांप को दूध पिलाए, तेल का दान करे, लोहे का सामान, चिमटा, तवा, अंगीठी ( रोटी पकाने का सामान ) आदि का दान करे, लोहे का छल्ला दाये हाँथ की मध्यमा उंगली में धारण करे।
    वैदिक ज्योतिष के मुताबिक़ भिन्न-भिन्न भावों में शनि का फल भी भिन्न-भिन्न होता है। शनि सूर्य-पुत्र के नाम से ख्यात है। कहते हैं कि शनि जिसे चाहे राजा से रंक बना देता है और रंक से राजा। आइए देखते हैं क्या हैं वे और भी उपाय जो शनि के प्रकोप को शान्त कर उनकी कृपा-दृष्टि को आकर्षित करते हैं।
हनुमान चालीसा का पाठ :
    हनुमान चालीसा का नियमित पाठ शनिदेव के प्रकोप से बचने का रामबाण उपाय है। अगर आप ढैया या साढे साती से गुज़र रहे हैं और शनि द्वारा दिए कष्टों से पीड़ित हैं, तो हनुमान चालीसा आपके लिए अचूक औषधि की तरह है। जनश्रुति है कि हनुमान जी ने शनि देव को लंका में दशग्रीव के बंधन से मुक्त कराया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कलियुग में अभिमानवश एक बार शनिदेव हनुमान जी के पास गए और बोले - “तुमने मुझे त्रेता में ज़रूर बचाया था, लेकिन अब यह कलिकाल है। मुझे अपना काम करना ही पड़ता है। इसलिए आज से तुम्हारे ऊपर मेरी साढ़े साती शुरू हो रही है। मैं तुमपर आ रहा हूँ।” यह कहते हुए वे हनुमान जी के मस्तक पर सवार हो गए। शनिदेव के कारण हनुमान जी को सर पर खुजली होने लगी, जिसे मिटाने के लिए उन्होंने सर पर एक विशाल पर्वत रख लिया। जिसके नीचे शनिदेव दब गए और “त्राहि माम् त्राहि माम्” चिल्लाने लगे। उन्होंने हनुमान जी से याचना की और कहा कि वे आगे से उन्हें या उनके भक्तों को कभी परेशान नहीं करेंगे। हनुमान चालीसा हनुमान जी के स्तोत्रों में बहुप्रचलित और अनन्त शक्तिसंपन्न है। इसका पाठ शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाला कहा गया है ।
तिल, तैल और छायापात्र का दान :
    तिल, तैल और छायापात्र शनिदेव को अत्यन्त प्रिय माने जाते हैं। इन चीज़ों का दान शनि की शान्ति का प्रमुख उपाय है। मान्यता है कि यह दान शनि देव द्वारा दिए जाने वाले कष्टों से निजात दिलाता है। छायापात्र दान की विधि बहुत ही सरल है। मिट्टी के किसी बर्तन में सरसों का तैल ले उसमें अपनी छाया देखकर उसे दान कर दें। यह दान शनि के आपके ऊपर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को दूर कर उनका आशीर्वाद लाता है।
धतूरे की जड़ धारण करें :
    वैदिक ज्योतिष में विभिन्न जड़ों की मदद से ग्रहों की शान्ति का विधान है। कई ज्योतिषियों का मानना है कि रत्न धारण करना नुक़सान भी पहुँचा सक्ता है, लेकिन जड़ धारण करने से ऐसी आशंका नहीं रहती है। रत्न ग्रह की शक्ति बढ़ाने का काम करते हैं, वहीं जड़ियाँ ग्रहों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने का कार्य करती हैं। शनिदेव को ख़ुश कर उनकी कृपा पाने के लिए ग्रन्थों में धतूरे की जड़ को धारण करने की सलाह दी गई है। धतूरे की जड़ का छोटा-सा टुकड़ा गले या हाथ में बांधकर धारण किया जा सकता है। इस जड़ी को धारण करने से शनि की ऊर्जा आपको सकारात्मक रूप से मिलने लगेगी और जल्दी ही आपको ख़ुद अन्तर महसूस होगा।
सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें :
        जड़ियों की ही तरह रुद्राक्ष को भी हानि रहित उपाय की मान्यता प्राप्त है। सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना न सिर्फ़ भगवान शिव को प्रसन्न करता है, बल्कि शनिदेव का आशीर्वाद भी दिलाता है। पुराणों के अनुसार सात मुखी रुद्राक्ष धारण करने से घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती है और लक्ष्मी मैया की कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही सेहत से जुड़ी समस्याओं में भी इसे बहुत प्रभावी माना जाता है। इस रुद्राक्ष को सोमवार या शनिवार के दिन गंगा जल से धोकर धारण करने से शनि जनित कष्टों से छुटकारा मिलता है और समृद्धि प्राप्त होती है।
    यहाँ बताए गए ये छोटे-छोटे उपाय करने में सरल हैं और जल्दी असर दिखाते हैं। अगर श्रद्धा के साथ इन उपायों को किया जाए, तो शनि देव की वक्र दृष्टि से बचकर उनकी कृपा सहज ही हासिल की जा सकती है। इन सरल उपायों को काम में लाएँ और शनि देव के आशीष से अपना जीवन सुखमय बनाएँ।
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