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Chandigarh

भारत में 434 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर हैं जो दुनिया में इस आयुवर्ग में सबसे अधिक है

November 08, 2019 10:11 PM
,चंडीगढ़ -- अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता-
 ‘‘भारत में 434 मिलियन से अधिक बच्चे और किशोर हैं जो दुनिया में इस आयुवर्ग में सबसे अधिक है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसिज (एनआईएमएचएएनएस), बेंगलुरु द्वारा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्देशन में संचालित किए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16, में 13-17 वर्ष आयु वर्ग में 9.8 मिलियन किशोरों का पता चलता है जो अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों से पीड़ित हैं।’’ ये बात डॉ. बी.एस. चवन, डायरेक्टर प्रिंसिपल, जीएमसीएच और हैड, डिपार्टमेंट ऑफ साइकेट्री, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच), सेक्टर 32 ने आज यहां कहीं। वे आज मनोचिकित्सा विभाग, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (जीएमसीएच), सेक्टर 32, द्वारा आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थबीइंग की तीन दिवसीय 15वीं  द्विवार्षिक नेशनल कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में बोल रहे थे। कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन जीएमसीएच में सांसद किरण खेर ने किया। कॉन्फ्रेंस का थीम ‘‘चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ: फ्रॉम इंटरवेंशन टू प्रिवेंशन’ है।  कॉन्फ्रेंस के आर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन प्रो.बी.एस. चवन ने इस दौरान बताया कि बाल और किशोर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष मनोचिकित्सकों की कमी को देखते हुए, यह कॉन्फ्रेंस विशेष रूप से स्टूडेंट्स के लिए काफी कुछ नया सीखने का एक शानदार मौका साबित होगी। 
अपने उद्घाटन संबोधन में खेर ने इस बात पर जोर दिया कि समय पर पहल के रूप में असमान स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है जो आज हमारे ध्यान की आवश्यकता है। किरन खेर, एमपी चंडीगढ़ ने जोर देकर कहा कि जो बच्चे हमारे राष्ट्र का भविष्य हैं, उन्हें विशेष देखभाल और ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न तनाव और तनाव की चरम सीमा उनके प्राकृतिक विकास में बाधा बन रही है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में दुनिया में किशोरों और बच्चों की सबसे अधिक संख्या है और इस प्रकार उन्हें ध्यान देने के लिए नीति निर्माताओं, शिक्षकों, माता-पिता और मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की बड़ी जिम्मेदारी है। आईएसीएम के महासचिव प्रो. विवेक अग्रवाल ने मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की व्यापकता को कम करने के लिए निवारक दृष्टिकोण की भूमिका पर विस्तार से जानकारी प्रदान की। आर्गेनाइजिंग सैकेट्ररी, प्रो. प्रीति अरुण ने कहा कि यह कॉन्फ्रेंस एक ऐतिहासिक कार्यक्रम था जो स्थानीय और साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर बाल और किशोर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस प्रयासों को बढ़ाता है। लगभग 250 प्रतिनिधियों द्वारा कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया जा रहा है और इससे बच्चों और किशोरों के सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान और कौशल से लैस करने के लिए माता-पिता के साथ-साथ मेंटल हेल्थ और अन्य प्रोफेशनल्स को मदद मिलेगी, जिनमें काउंसलर्स, स्कूल टीचर्स भी शामिल हैं।  इस एकेडमिक आयोजन के पहले दिन ‘डिजिटल वर्ल्ड एंड डेवलपिंग ब्रेन: द रिस्क एंड बैनेफिट्स’ पर एक सीएमई भी आयोजित की गई। इसके बाद विभिन्न सिम्पोजियमों और वर्कशॉप्स का आयोजन किया गया। 
डॉ.शेखर शेषाद्रि, प्रोफेसर, एनआईएमएचएएनएस बैंगलोर और प्रो.राजेश, एम्स, नई दिल्ली के प्रोफेसर राजेश, सिम्पोजियम के स्पीकर्स थे। डॉ.आदर्श कोहली, प्रेसिडेंट, आईएसीएएम ने कहा कि दवाओं के बिना बड़ी संख्या में बचपन के विकारों का प्रबंधन किया जा सकता है, बशर्ते इनका जल्द पता लगा लिया जाए। वहीं अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर के लिए पेरेंटिंग स्किल ट्रेनिंग इंटरवेंशन पर एक ट्रेनिंग वर्कशॉप का भी आयोजन किया गया, जिसमें काफी कुछ सीखने का मौका मिला। इसके साथ ही ‘बिहेवरियल एडीक्शन एंड इवोलविंग एपीडेमिक’ पर भी एक जानकारी भरपूर सिम्पोजियम आयोजित किया गया, जिस दौरान इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों द्वारा एक और ज्ञानवर्धक विचार-विमर्श किया गया। 
 
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