चंडीगढ़- अग्रजन पत्रिका से इंद्रा गुप्ता- श्री राम मन्दिर सेक्टर 47-डी चण्डीगढ़ द्वारा शिवालय स्थापना के वार्षिक उत्सव पर मन्दिर परिसर में तीन दिवसीय भगवान शिव कथा का भव्य आयोजन किया गया। जिसके प्रथम दिवस के अंतर्गत दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान से परम पूज्य श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी संयोगिता भारती जी ने सती प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में प्रभु कथा के लिए समय निकालना चाहिए। कथा के माध्यम से ही एक इंसान को अपने जीवन की वास्तविकता का बोध होता है कि उसका अमुल्य जीवन मात्र सांसारिक क्रियाकलापों या मौज-मस्ती के लिए नहीं मिला। इसका परम ध्येय है-ईश्वर की प्राप्ति करना। ईश्वर के साथ जुड़कर अपने जीवन के प्रत्येक कार्य को करना। इसके साथ-साथ कथा को पूर्ण एकाग्रता, श्रद्धा व प्रेम से सुनना भी अनिवार्य है क्योंकि जब भगवान भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी सती जी के साथ अगस्त मुनि जी के आश्रम में श्री राम कथा को श्रवण करने आते हैं, तो माता सती कथा को एकाग्रता से श्रवण नहीं करती। जिस कारण वह प्रभु राम को नर लीला करते हुए देखती हैं, तो पहचान नहीं पाई और मन में संदेह उत्पन्न हो जाता है। साध्वी जी ने कहा कि जब ब्रह्मा जी ने सती के पिता दक्ष को प्रजापति की उच्च पद्वी पर सन्मानित किया तो राजा दक्ष अहं भाव से भर गया। अपने अहं भाव को पोषित करने के लिए राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उसने सती और महादेव जी को छोड़कर सभी को आदर सहित निमन्त्रण भेजा। जब सती महादेव की आज्ञा पाकर शिव गणों के साथ यज्ञ में पहुँची तो किसी ने भी राजा दक्ष के भय से उसका सन्मान नहीं किया। यज्ञ में जब महादेव का कहीं भी भाग नहीं निकाला तो सती जी ने महादेव जी का अपमान जानकर योगाग्रि में स्वयं को भस्मीभूत कर लिया। प्रजापति दक्ष का यज्ञ खंडित हो गया।
साध्वी जी ने कहा कि जीवन में अहं भाव से किया गया प्रत्येक कार्य सदा ही असफ ल रहता है। अहंकार एक दिवार है जिसके कारण जीवात्मा और परमात्मा का मिलन संभव नहीं हो सकता। यह एक ऐसा रोग भी है, जिसके कारण मनुष्य को यमदूत की मार भी सहन करनी पड़ती है। सच्चे संत ब्रह्मज्ञान की दीक्षा देकर विकारों से मुक्त कर ईश्वर से मिलाप करवा देते हैं। इसके अतिरिक्त सुमधुर भजनों एवं चौपाइयों ने श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर दिया। प्रथम दिवस कथा का समापन प्रभु की पावन आरती द्वारा किया गया।