----पंडित कृष्ण मेहता का आज का आलेख -------
-----सौभाग्य के मार्ग मे आने वाली बाधायें------दुर्भाग्य को कैसे बदले सौभाग्य में ------
अक्सर हमे सुने को मिलता है कर्मो का लेखा जोखा कुछ नही होता ,कर्म, पूर्व जन्म कहीं नहीं होते हमे अब केवल यहीं पर किया ही मिलता है, फिर भी हम अक्सर देखते है कि फलां बंदा बेहद गंदे कर्म करके भी राज भोग रहा है तो कोई संत जीवन जीते हुए भी नर्क भोग सा जीवन जीता हैॅ। जब पूर्व जन्मों को कोई लेखा ही नही तो फिर कयों हमे जन्म से ही कोई राजा जीवन में जन्म लेतसा मिलता है कोई रंक । हमे कहां जन्म मिला यह सब पूर्व जन्मों में किए कर्माे पर निर्भर है। कोई जन्म के साथ ही राजा के घर का चिराग बन जाता है कोई सडक पर कूडेदानों में जन्म के साथ ही पहुंच जाता है। मगर सौभाग्य और दुर्भाग्य का संबंध पूरी तरह केवल हमारे पूर्व जन्म के कर्मों पर ही आधारित नहीं होता। कई दफा देखा है कि कभी कभी कर्म और भाग्य का तालमेल भी सौभाग्य नहीं बन पाता, अधिक परिश्रम करने के बाद भी किसी भी प्रकार का कोई शुभ या मनचाहा परिणाम नहीं निकल पाता। एक ही कार्य को कई बार करने के बाद भी पूर्ण सफलता नहीं मिल पाती। इसका सीधा सा अर्थ यह होता है कि कोई न कोई बाधा है जो अदृश्य है, किन्तु यह बाधा क्या है और उसका निवारण क्या होना चाहिए ?
मेरा मानना है कि जहां तक मैं जानता हूँ , ऐसे मे 4 मे से किसी एक तरह की बाधा हो सकती है या चारों भी हो सकती है
1. ग्रह नक्षत्र बाधा,
2. गृह ( वास्तु ) बाधा,
3. पितृ बाधा और
4. देव बाधा।
कई चीजों को हम प्रकृति से जोड़ कर बदलाव भी कर सकते है उसके लिए किसी पारंगत ज्ञानी का सानिध्य या किसी फकीर की दुआ काम आती है।
ग्रह नक्षत्र से अधिक प्रभाव गृह का अर्थात घर के वास्तु का प्रभाव होता है। यदि ये दोनों सही हैं तो फिर पितृ बाधा पर विचार किया जा सकता है।
यदि ये तीनों भी सही हैं और फिर भी कर्म असफल हो रहा है, तो अंत मे देव बाधा मानी जा सकती है।
ग्रह नक्षत्र बाधा ---------
पहली प्राथमिक बाधा को ग्रह नक्षत्रों या कुंडली की बाधा माना जाता है। किसी को राहु परेशान करता है तो कोई शनि से पीडि़त है,जबकि कुंडली बनती है पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार।
फिर उसका संचालन होता है इस जन्म के कर्मों अनुसार। कर्म के सिद्धांत को समझना बहुत ही कठिन होता है। कोई ग्रह या नक्षत्र किसी व्यक्ति विशेष पर उतना प्रभाव नहीं डालता जितना कि वह स्थान विशेष पर डालता है। यद्यपि व्यक्ति 27 मे से जिस नक्षत्र मे जन्म लेता है उसकी वैसी प्रकृति होती है।कोई व्यक्ति क्यों किसी विशेष और कोई क्यों किसी निम्नतम नक्षत्र मे जन्म लेता है ? इसका कारण है व्यक्ति के पूर्व जन्मों की गति इसीलिए नक्षत्रों का समाधान आवश्यक है।
निवारण --------
रत्न और रुद्राक्ष भी ग्रह नक्षत्रों के उचित उपचार माने गए हैं। इसके लिए आप किसी लाल किताब के विशेषज्ञ या अच्छे ज्योतिषी से मिलकर इस बाधा को दूर कर सकते हैं।
इसका सरल सा उपाय यह भी है कि आप अपने शरीर और कर्म को पवित्र बनाकर रखें। पांचों इंद्रियां साफ सुथरी और पवित्र रखें। सोच को पवित्र रखे किसी के लिए दुराभाव ना पाले ।
आहार और विहार के नियम समझें। ग्रहों का सबसे पहला प्रभाव शरीर और मन पर ही पड़ता है। अपना आहार, आचरण और चलन बदलें। उचित भोजन का सेवन करें और भोजन के हिन्दू नियमों को मानेंगे तो ग्रह बाधा से दूर रहेंगे।
गृह बाधा या वास्तु दोष-------
घर के स्थान और दिशा का जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव होता है। हम 24 घंटों मे से लगभग 15 घंटे का समय घर मे बिताते है ।यदि घर मे वास्तु दोष है तो घर ही सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। यदि ग्रह-नक्षत्र सही न भी हों तो भी यदि घर का वास्तु सही है तो सब कुछ सही होने लगेगा। अक्सर यह देखने मे आया है कि उत्तर, ईशान , पश्चिम एवं वायव्य दिशा का घर ही उचित और शुभ फल देने वाला होता है। घर के अंदर शौचायल, स्नानघर और किचन को उचित दिशा मे ही बनवाएं।
निवारण -------
घर का वास्तु बिगड़ा हो तो प्रतिदिन संध्या के समय कपूर जलाएं। जिस दिशा का वास्तु बिगड़ा हो वहां कपूर की एक डली रख दें। घर सदा साफ सुथरा रखें। घर के भीतर अनावश्यक वस्तुएं नहीं रखें। घर मे ढेर सारे देवी और देवताओं के चित्र या मूर्तियां न रखें। घर का ईशान कोण हमेशा खाली रखें या उसे जल का स्थान बनाएं।दरवाजे के ऊपर भगवान गणेश का चित्र और दाएं बाएं स्वस्तिक के साथ लाभ शुभ लिखा हो। घर मे मधुर सुगंध और संगीत से वातावरण को अच्छा बनाएं। रात्रि मे सोने से पहले घी मे तर किया हुआ कपूर जला दें।
पितृ बाधा -----------
यदि आपके ग्रह नक्षत्र भी सही हैं,घर का वास्तु भी सही है तब भी किसी प्रकार का कोई आकस्मिक दुख या धन का अभाव बना रहता है, तो फिर पितृ बाधा पर विचार करना चाहिए।
पितृ बाधा का क्या अर्थ है ? पितृ बाधा का अर्थ यह होता है कि आपके पूर्वज आपसे कुछ अपेक्षा रखते हैं,दूसरा यह कि आपके पूर्वजों के कर्म का आप भुगतान कर रहे हैं,
तीसरा यह कि आपके किसी पूर्वज या कुल के किसी सदस्य का रोग आपको लगा है,चौथा कारण यह कि कोई अदृश्य शक्ति आपको परेशान करती है।
निवारण --------
इसका सरल सा निवारण है कि प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करना। साथ मे रामरक्षा स्त्रोत् जरूर पढे। श्राद्ध पक्ष के दिनों मे तर्पण आदि कर्म करना और पूर्वजों के प्रति मन मे श्रद्धा रखना भी आवश्यक है। घर आए को शुद्ध जल व भोजन अवश्य करवाऐ।
देव बाधा --------
देव बाधा से बचना कठिन होता है। अधिकांश लोगों पर देव बाधा नहीं होती। देव बाधा उन व्यक्तियों पर होती है जो नास्तिक है, सदा झूठ बोलते रहते हैं, किसी भी प्रकार का व्यसन करते हैं ,
देवी देवता, धर्म या किसी साधु का उपहास करते या उनके प्रति असम्मान व्यक्त करते रहते हैं, पर पुरुष / पर स्त्री से संबंध रखते हैं। देवी देवता हमारे हर गुप्त कार्य या बातों को सुनने और देखने की क्षमता रखते हैं।छली, कपटी, कामी, दंभी और हिंसक व्यक्ति के संबंध मे देवता अधिक जानकारी रखते हैं। वे जानते हैं कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं।आप मनुष्य के भेष मे असुर हैं या मानव, देव हैं या दानव।
निवारण -------
देव बाधा से बचने का एकमात्र उपाय है कि सभी तरह का व्यसन छोड़कर सत्य वचन बोलना। सत्यवादी रहकर एकनिष्ठ बनें। प्रतिदिन मंदिर जाकर हनुमानजी से क्षमा याचना करें। चतुर्थी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या के अलावा किसी त्यौहार विशेष पर पवित्र बने रहने का संकल्प लें। पवित्र काया और पवित्र आचरण ही देवकृपा का पात्र हैं। अपने कुल देवता व कुलदेवी के कम से कम साल मेें एक बार दर्शन अवश्य करे। कुल देवता ओर कुलदेववी का एक आभा आवरण हमेशा आशीर्वाद रूप में हमारे चारों ओर अदृश्य रूप में रहता है जितना हमे उनके दर्शन व पूजा पाठ करेगे उतना वो आवरण मजबूत होगा उनके दर्शनो की दूरी से वो आवरण कमजोर होता जाता है तब हम मुसीबतों के ग्रास बनने शुरू हो जाते है। ऐसे ही हमारे पित्रों का अदृश्य आशीर्वाद होता है वह भी दान तर्पण से मजबूत होता है ओर पितरो को याद ना करने से आवरण समाप्त होता जाता है । अ
आज का समाज हालांकि इन बातों को दकियानूसी मानते हुए विज्ञान को सर्वोपरि मानता है मगर अक्सर अस्पतालों में भ ी भगवान कहलाने वाले डाक्टरों को कहते सुना जात हैँ अब केवल भगवान पर आस है । ऐसे में अपने अच्छे कर्माे से हम बहुत कुछ पा सकते है। इसलिए मानवता को अपना कर भारत की मजबूत संस्कृति की विरासत को अपना कर हम अपने जीवन को सुखद बना सकते है।