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-आज शनिदेव पर--------पंडित कृष्ण मेहता का आलेख --

June 09, 2019 10:40 PM
 -----------------------पं0 कृष्ण मेहता --------------------
अज्ञानियों द्वारा खलनायक बनाए गए शनि देव को जाने अलग नजरिए से -----पीड़ा केवल उन्हे ही देते है जो कर्माे को सही नही कमाते ,वर्ना शनि देव तो भागय से भी बढ कर देने की ताकत रखते है। 
पढिए --आज शनिदेव पर ------------------पंडित $कृष्ण मेहता का आलेख ---------------------
शनि को समाज दुनिया में किसी खलनायक की तरह पेश किया जाता रहा है। मगर सीधे ओर सपाट शब्दों में शनि केवल ओर केवल न्याय देवता धर्मराज है। शनि हमे केवल हमारे उन्ही कर्माे का फल देता है जो हम करते है, केवल ये सोच कर की कोई हमे देख नही रहा है। बस शनि देवता हमारे कर्मो का भुगतान करता है। हम भले ही पंडितो व किसी भी प्रकार के उपायों को कर ले मगर शनिदेव के कहर से बचना है केवल सच्चा इंसाान बनना ही सबसे बढिया उपाय है, केवल ओर केवल इमानदार व दूसरो की भलाई के कार्यो से ही शनि जनित दिक्कतों से राहत पा सकते है। शनि दंडाधिकारी है। यही कारण है कि यह साढ़े साती के विभिन्न चरणों में जातक को कर्मानुकूल फल देकर उसकी उन्नति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। कृषक, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का अधिकार होता है। कभी भी बेवजह इन्हे ना सताए अन्यथा दंड गंभीर हो सकते है। 
     शनि के फलों का विभिन्न दृष्टियों से शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी, और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार इसका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। ऊसर भूमि इसका वासस्थान है। इसका रंग काला है। यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है। यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु का देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हंै। शनि सूर्य का पुत्र है। इसकी माता छाया एवं मित्र राहु और बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं।  जब गोचर में शनि बली होता है तो इससे संबद्ध लोगों की उन्नति होती है। 
कुंडली की विभिन्न भावों में शनि की स्थिति के शुभाशुभ फल--------
 शनि 3, 6,10, या 11 भाव में शुभ प्रभाव प्रदान करता है। प्रथम, द्वितीय, पंचम या सप्तम भाव में हो तो अरिष्टकर होता है। चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर प्रबल अरिष्टकारक होता है। यदि जातक का जन्म शुक्ल पक्ष की रात्रि में हुआ हो और उस समय शनि वक्री रहा हो तो शनिभाव बलवान होने के कारण शुभ फल प्रदान करता है। शनि सूर्य के साथ 15 अंश के भीतर रहने पर अधिक बलवान होता है। जातक की 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में अति बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। उक्त अवधि में शनि की महादशा एवं अंतर्दशा कल्याणकारी होती है। शनि निम्नवर्गीय लोगों को लाभ देने वाला एवं उनकी उन्नति का कारक है। शनि हस्त कला, दास कर्म, लौह कर्म, प्लास्टिक उद्योग, रबर उद्योग, ऊन उद्योग, कालीन निर्माण, वस्त्र निर्माण, लघु उद्योग, चिकित्सा, पुस्तकालय, जिल्दसाजी, शस्त्र निर्माण, कागज उद्योग, पशुपालन, भवन निर्माण, विज्ञान, शिकार आदि से जुड़े लोगों की सहायता करना है। यह कारीगरों, कुलियों, डाकियों, जेल अधिकारियों, वाहन चालकों आदि को लाभ पहुंचाता है तथा वन्य जन्तुओं की रक्षा करता है। शनि से अन्य लाभ शनि और बुध की युति जातक को अन्वेषक बनाती है। चतुर्थेश शनि बलवान हो तो जातक को भूमि का पूर्ण लाभ मिलता है। लग्नेश तथा अष्टमेश शनि बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है। तुला, धनु, एवं मीन का शनि लग्न में हो तो जातक धनवान होता है। वृष तथा तुला लग्न वालो को शनि सदा शुभ फल प्रदान करता है। वृष लग्न के लिए अकेला शनि राजयोग प्रदान करता है। कन्या लग्न के जातक को अष्टमस्थ शनि प्रचुर मात्रा में धन देता है तथा वक्री हो तो अपार संपति का स्वामी बनाता है। शनि यदि तुला, मकर, कुंभ या मीन राशि का हो तो जातक को मान-सम्मान, उच्च पद एवं धन की प्राप्ति होती है। शनि से शश योग- शनि लग्न से केंद्र में तुला, मकर या कुंभ राशि में स्थित हो तो शश योग बनता है। इस योग में व्यक्ति गरीब घर में जन्म लेकर भी महान हो जाता है। यह योग मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला वृश्चिक, मकर एवं कुंभ लग्न में बनता है। भगवान राम, रानी लक्ष्मी बाई, पं. मदन मोहन मालवीय, सरदार बल्लभ भाई पटेल, आदि की कुंडली में भी यह योग विद्यमान रहा है। 
विभिन्न लग्नों में शनि की स्थिति के शुभाशुभ फल----------------
मेष- इस लग्न में शनि कर्मेश तथा लाभेश होता है। इस लग्न वालों के लिए यह नैसर्गिक रूप से अशुभ है, लेकिन आर्थिक मामलों में लाभदायक होता है। वृष-इस लग्न में केंद्र शनि तथा त्रिकोण का स्वामी होता है। उसकी इस स्थिति के फलस्वरूप जातक को राजयोग एवं संपति की प्राप्ति होती है। मिथुनइस लग्न में यदि शनि अष्टमेश या नवमेश होता है। यह जातक को दीर्घायु बनाता है। कर्क- इस लग्न में शनि अति अकारक होता है। सिंह- इस लग्न में यह षष्ठ एवं सप्तम घर का स्वामी होता है। इस स्थिति में यह रोग एवं कर्ज देता है तथा धन का नाश करता है। कन्या- इस लग्न में शनि पंचम् तथ षष्ठ स्थान का स्वामी होकर सामान्य फल देता है। यदि इस लग्न में अष्टम स्थान में नीच राशि का हो तो व्यक्ति को करोड़पति बना देता है। तुला-इस लग्न के लिए शनि चतुर्थेश तथा पंचमेश होता है। यह अत्यंत योगकारक होता है। वृश्चिक- इस लग्न में शनि तृतीयेश एवं चतुर्थेश होकर अकारक होता है, किंतु बुरा फल नहीं देता। धनु-इस लग्न के लिए शनि निर्मल होने पर धनदायक होता है, लेकिन अशुभ फल भी देता है। मकर-इस लग्न के लिए शनि अति शुभ होता है। कुंभ-इस लग्न के लिए भी यह अति शुभ होता है। मीन-शनि मीन लग्न वालों को धन देता है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। 
भाव के अनुसार शनि का फल------
प्रथम, भाव में शनि तांत्रिक बनाता है, किंतु शारीरिक कष्ट देता है और पत्नी से मतभेद कराता है। द्वितीय भाव में शनि संपति देता है, लेकिन लाभ के स्रोत कम करता है तथा वैराग्य भी देता है। 
तृतीयभाव में शनि पराक्रम एवं पुरुषार्थ देता है। शत्रु का भय कम होता है। चतुर्थ भाव में शनि हृदय रोग का कारक होता है, हीन भावना से युक्त करता है और जीवन नीरस बनाता है।पंचम भाव में शनि रोगी संतान देता है तथा दिवालिया बनाता है। षष्ठ भाव में शनि होने पर चोर, शत्रु या सरकार जातक का कोई नुकसान नहीं कर सकता है। उसे पशु-पक्षी से धन मिलता है। 
सप्तम भाव में स्थित शनि जातक को अस्थिर स्वभाव का तथा व्यभिचारी बनाता है। उसकी स्त्री झगड़ालू होती है। अष्टम भाव में स्थित शनि धन का नाश कराता है। इसकी इस स्थिति के कारण घाव, भूख या बुखार से जातक की मृत्यु होती है। दुर्घटना की आशंका रहती है। नवम् भाव में शनि जातक को संन्यास की ओर प्रेरित करता है। उसे दूसरों को कष्ट देने में आनंद मिलता है। 36 वर्ष की उम्र में उसका भाग्योदय होता है। दशम स्थान का शनि जातक को उन्नति के शिखर तक पहुंचाता है। साथ ही स्थायी संपति भी देता है। एकादश भाव में स्थित शनि के कारण जातक अवैध स्रोतों से धनोपार्जन करता है। उसकी पुत्र से अनबन रहती है। द्वादश भाव में शनि अपनी दशा-अतंर्दशा में जातक को करोड़पति बनाकर दिवालिया बना देता है। 
ढैया या लघु कल्याणी -----
लघु कल्याणी या ढैया जब शनि गोचर में जन्म राशि से चतुर्थ भाव में भ्रमण करता है तो इस अवधि को लघु कल्याणी ढैया कहा जाता है। दो वर्ष छ: माह की इस अवधि में जातक को अधिक कष्ट नहीं होता है। थोड़ी मानसिक परेशानी होती है। किंतु यदि शनि तुला, धनु, मकर, कुंभ या मीन का हो तो भवन और वाहन देता है। 
ढैया के अन्य शुभाशुभ फल--
 जब शनि गोचर में जन्म राशि से अष्टम भाव में जाता है तो व्यक्ति वात रोग से ग्रस्त होता है। उसके पैरों में दर्द की संभावना होती है, लेकिन दशा एवं महादशा अच्छी हो तो दर्द का अनुभव नहीं होता है। कन्या लग्न वाले को यह ढैया अपार संपति देती है, क्योंकि द्वितीय भाव पर शनि की उच्च दृष्टि होती है। शनि की साढ़े साती-दीर्घायु लोगों के जीवन में साढ़े साती तीन बार आती है। प्रथम बार की साढ़े साती जातक के शरीर एवं मां-बाप को प्रभावित करती है। द्वितीय साढ़े साती कार्य, रुचि, आर्थिक स्थिति एवं पत्नी पर प्रभाव डालती है। तृतीय साढ़े साती जातक के स्वास्थ्य पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। किसी-किसी जातक की मृत्यु भी हो जाती है। साढ़े साती का भी अनुकूल प्रभाव: शनि की साढ़े साती हमेशा अशुभ ही हो, यह जरूरी नहीं। अपने विभिन्न चरणों में यह शुभ फल भी देती है।
 विभिन्न राशियो में इसके ढैया के शुभ प्रभाव का विश्लेषण  -----------
मेष- इस राशि के लोगों को अंतिम ढाई वर्षों के दौरान शुभ फल मिलता है। वृष इस राशि वालों के लिए मध्य तथा अंत के ढाई वर्ष शुभ होते हैं। इस दौरान जातक की उन्नति होती है और उस संपति की प्राप्ति होती है। मिथुन इस राशि के लिए आरंभ के ढाई वर्ष अनुकूल होते हैं। इस दौरान जातक की तीर्थ यात्रा होती है एवं शुभ कार्य पर धन खर्च होता है। कर्क आरंभ के ढाई वर्ष शुभ होते हैं। सिंह अंत के ढाई वर्ष शुभ होते हैं। कन्या अंत के ढाई वर्ष शुभ होते हैं, आर्थिक कष्ट नहीं होता है। तुला मध्य के ढाई वर्ष शुभ होते है। वृश्चिक आरंभ के ढाई वर्ष शुभ होते हैं। 
धनु मध्य के ढाई वर्ष शुभ होते हैं। मकर आरंभ तथा अंत के ढाई वर्ष शुभ होते है। कुंभ मध्य एवं अंत के ढाई वर्षों के दौरान सुख-शांति मिलती है। मीन इस राशि के लिए मध्य के ढाई वर्ष शुभ होते है। विशेष इस तरह ढैया एवं साढ़े साती शुभ तथा अशुभ दोनों फल प्रदान करती हैं। लेकिन जब गोचर में शनि तृतीय, षष्ठ या एकादश भाव में प्रवेश करता है तो पूर्ण अनुकूल फल प्रदान करता है। 
शनि की कुछ अन्य स्थितियों के शुभाशुभ फल-----------------
 तृतीय भाव का शनि स्वास्थ्य लाभ, आराम तथा शांति प्रदान करता है। साथ ही, शत्रु पर विजय दिलाता है। षष्ठ भाव का शनि सफलता, भूमि भवन, संपति  एवं राज्य लाभ कराता है। एकादश भाव का शनि पदोन्नति, लाभ तथा मान सम्मान में वृद्धि कराता है। साथ ही भूमि तथा मशीनरी का लाभ देता है। जिन जातकों के जन्म काल में शनि वक्री होता है वे भाग्यवादी होते हैं। उनके क्रिया-कलाप किसी अदृश्य भक्ति से प्रभावित होते है वे एकांतवासी होकर प्राय: साधना में लगे रहते हैं। धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हो, तो जातक राजा या गांव का मुखिया होता है और राजतुल्य वैभव पाता है। द्वितीय स्थान का शनि वक्री हो तो जातक को प्रदेश तथा विदेश से धन की प्राप्ति होती है। तृतीय भाव का वक्री शनि जातक को गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता बनाता है, लेकिन माता के लिए अच्छा नहीं होता है। चतुर्थ भावस्थ शनि मातृ हीन, भवन हीन बनाता है। ऐसा व्यक्ति घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं निभाता और अंत में संन्यासी बन जाता है। लेकिन, चतुर्थ में शनि तुला, मकर या कुंभ राशि का हो तो जातक को पूर्वजों की संपति प्राप्त होती है। पंचम भाव का वक्री शनि प्रेम संबंध देता है। लेकिन जातक प्रेमी को धोखा देता है। वह पत्नी एवं बच्चे की भी परवाह नहीं करता है। षष्ठ भाव का वक्री शनि यदि निर्बल हो तो रोग, शत्रु एवं ऋण कारक होता है। सप्तम भाव का वक्री शनि पति या पत्नी वियोग देता है। यदि शनि मिथुन, कन्या, धनु या मीन का हो तो एक से अधिक विवाहों अथवा विवाहेतर संबंधों कारक होता है। अष्टम भाव में शनि हो तो जातक ज्योतिषी दैवज्ञ, दार्शनिक एवं वक्ता होता है। ऐसा व्यक्ति तांत्रिक, भूतविद्या, काला जादू आदि से धन कमाता है। नवमस्थ वक्री शनि जातक की पूर्वजों से प्राप्त धन में वृद्धि करता है। उसे धर्म परायण एवं आर्थिक संकट आने पर धैर्यवान बनाता है। दशमस्थ शनि वक्री हो तो जातक वकील, न्यायाधीश, बैरिस्टर, मुखिया, मंत्री या दंडाधिकारी होता है। एकादश भाव का शनि जातक को चापलूस बनाता है। व्यय भावस्थ वक्री शनि निर्दयी एवं आलसी बनाता है। 
शनि दोष निवारण के सरल उपाय-------------------यहां पर शनि शांति के लिए कुछ खास उपाय बता रहा हूं मगर इन सबसे पहले बताना चाहुंगा कि सबसे पहले शनि के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए अपने आचरण को सुधारना होगा तभी अन्य उपाय कुछ राहत देंगे । गायों की सेवा से शनि देव बेहद प्रसन्न होते है। इसलिए अपने आचरण को सुमधुर बनाए बिना शनि देव की कृपा के लिए किए जाने वाला हर उपाय महज समय की बर्बादी ही होगा। अपने बडों का सममान व मातापिता की सेवा करे किसी के लिए कोई दुर्भावना ना रखे । इस बात पर अमल के बाद ही नीचे दिए उपायों को करे ,,
   शनिवार को सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निर्वति होकर गुड़ मिश्रित जल पीपल के वृक्ष की जड़ में दें एवं शाम को तिल के तेल का दीप पीपल के नीचे जलाएं। अगर जातक को कष्ट बहुत हो, तो उसे शनिवार को भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए और आचरण पवित्र रखना चाहिए। घर में दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करें। जब तक शनि की महादशा अंतर्दशा, साढ़े साती अथवा ढैया का प्रकोप हो, तब तक मांस, मछली, शराब आदि का सेवन न करें। कौए एवं काले कुते को प्रति दिन एक बार भोजन दें। काले घोड़े की नाल की अंगूठी सप्ताह भर गोबर में रखकर पवित्र करें और फिर उसे बायें हाथ की मध्यमा में शनिवार को धारण करें। यथाशक्ति काले उड़द, काले तिल, कुलथी, लोहा, काले कपड़े, जूते और छाते दक्षिणा सहित दान करें। शनिवार को ब्रह्मचर्य का पालन करें।
इसके साथ ही काले घोड़े की नाल का प्रयोग भी बेहद कारगर माना जाता है , इसलिए इस पर थोडा सा विस्तार कर रहे है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग लाभांवित हो सके-----
शत्रु एवं शनि पीडि़त लोग काले घोड़े की नाल के छल्ले का प्रयोग करें तो उत्तम लाभ होता है। यह छल्ला दाहिने हाथ की बीच की (मध्यमा) उंगुली में धारण करना चाहिए। लोगों की बुरी नजर से बचने का अत्यन्त सटीक उपाय है ध्यान रखेंना चाहिए वह छल्ला एकदम शुद्व एवं प्रमाणिक होना चाहिए। तभी इसका पूर्ण लाभ मिलता है घर तथा कार्य स्थान के मुख्य दरवाजे के ऊपर अन्दर की ओर ह्व के आकार में लगाई गई काले घोड़े के नाल उस स्थान की सभी प्रकार तांत्रिक प्रभाव जादू-टोने, नजर आदि से रक्षा करती है। तंत्र क्रियाओं में अनेक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। काले घोड़े की नाल भी उन्हीं में से एक है। ऐसा मानते हैं कि तंत्र प्रयोग में यदि काले घोड़े की नाल का प्रयोग किया जाए तो असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार वैसे तो किसी भी घोड़े की नाल बहुत प्रभावशाली होती है लेकिन यदि काले घोड़े के अगले दाहिने पांव की पुरानी नाल हो तो यह कई गुना अधिक प्रभावशाली हो जाती है।काले घोड़े की नाल एक ऐसी वास्तु है जो शनि समबधित किसी भी पीड़ा जैसे शनि की अशुभ दशा, ढैया, साढ़ेसाती शनि का कोई अशुभ योग आदि हर पीड़ा में सामान रूप से चमत्कारी है बशर्ते यह पूर्ण रूपेण सिद्ध हो। यहाँ सिद्ध से अभिप्राय नाल पहले काले घोड़े के लिए प्रयोग कि गई हो फिर शुभ महूर्त में शनि मंत्रो से व वैदिक प्रक्रिया द्वारा प्राण प्रतिष्ठित की गई हो। 
यहां पर सिद्ध या उर्जावान काले घोड़े की नाल को परखने के कुछ बहुत ही प्रामाणिक तरीके भी प्रस्तुत है-----
 इस प्रतिष्ठित नाल को आप कुछ घंटो (कम से कम 6 से 8 घंटे) के लिए मक्के में रख दिया जाये और फिर जब कुछ समय बाद देखा जाये तो सही सिद्ध घोड़े की नाल उस मक्के को पका देंती है। या काले वस्त्र में लपेट कर अनाज में रख दो तो अनाज में वृद्धि होती है अगर तिजोरी में रख दो तो धन में वृद्धि हो। अंगूठी या छल्ला बनाकर धारण करे तो शनि के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है। नाल द्वार पर सीधा लगाये तो दैवीय कृपा प्राप्त होती है। द्वार पर उल्टा लगाओ तो भूत, प्रेत, या किसी भी तंत्र मंत्र से बचाव करेगी।शनि के प्रकोप से बचाव हेतु काले घोड़े की नाल से बना छल्ला सीधे हाथ में धारण करें। काले घोड़े की नाल से चार कील बनवाये और शनि पीडि़त व्यक्ति के पलंग में चारो पायो में लगा दे। काले घोड़े की नाल से चार कील बनवाये और शनि पीडि़त व्यक्ति के घर के चारो कोने पे लगाये। काले घोड़े की नाल से एक कील बनाकर सवा किलो उरद की दाल में रख कर एक नारियल के साथ जल में प्रवाहित करे।
 काले घोड़े की नाल से एक कील या छल्ला बनवा ले, शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भर कर उसमे छल्ला या कील डाल कर अपना मुख देखे और पीपल के पेड़ के नीचे रख दे।
उपरोक्त उपायो से अवश्य ही शनि से होने वाली पीड़ा में राहत मिलती है।
आपको बताते है लग्र में उच्च के शानि क्या -2 फल देते है-------और नीचस्थ का क्या फल होता है-----
लग्न में मित्र क्षेत्री शनि का फल -------
लग्न में शनि सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो ऐसे जातक राजा के समान व देश या नगर का अधिपति होता है।लग्न में शनि अपनी उच्च राशि तुला में स्थित हो तो ऐसे जातक का रंग साँवला होता है। लग्न में शनि अपने उच्च नवमांश में हो ऐसे जातक की रंगत मिश्रित वर्ण वाली होती है।लग्न में शनि षडवर्ग शुद्ध होकर स्थित हो तो मनुष्य के शरीर का वर्ण गोरा होता है। लग्न में शनि अपने मित्र ग्रह की राशि मे स्थित हो तो ऐसे जातक का रंग गोरा होता है।  
लग्न में शत्रु क्षेत्री व नीचस्थ शनि का फल-----
 लग्न में शनि अपने शत्रु ग्रह की राशि मे स्थित हो तो ऐसे जातक कुरूप होते है।  लग्न में शनि अपने शत्रु ग्रह के नवमांश में स्थित हो जातक के नाखून मोटे होते है। लग्न में शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि मे स्थित हो तो ऐसे जातक के घुटने एवं पिंडलियां लंबी होती है। लग्न में शनि अपनी नीच राशि मेष में स्थित हो तो ऐसे जातक को सैदव खांसी अथवा अन्य स्वसन संबंधित शिकायत रहती है।यदि लग्न में शनि अपनी नीच राशि के नवमांश में स्थित हो तो मनुष्य को कफ (बलगम) व वायु विकार होते है।यदि शनि लग्न में पाप ग्रहों के वर्ण में गया हो तो जातक को पित्त विकार होते है। लग्न में शनि अपने मित्र ग्रह के नवमांश में हो तो ऐसे जातक की हड्डियों में विकार एवं शरीर मे चर्बी अधिक होती है। लग्न में शनि वर्गोत्तम नवमांश में गया हो तो ऐसे जातक मोटे शरीर वाले होते है।
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