पंचकूला 27 जनवरी- अग्रजन पत्रिका से इंदिरा गुप्ता- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 71वें गणतंत्र दिवस पर दुर्गा मन्दिर सेक्टर 7 पंचकूला में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी त्रिपदा भारती जी अपने पूरे वाद्यवृद के साथ विशेष रूप ने नूरमहल, पंजाब से पधारी। उन्होंने गणतंत्र दिवस के विषय मे बताते हुए कहा कि 26 जनवरी को 18 बार स्वतंत्रता दिवस की तरह मनाया गया था। यह बात तब की है, जब सन 1929 के दिसंबर माह में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर में एक अधिवेशन किया था। उसमें उनके द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया- 'यदि अंग्रेजी शासन ने भारत को स्वराज्य नहीं दिया, तो भारत खुद को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।' अंग्रेजों ने जब कोई प्रतिक्रिया न दी, तो कांग्रेस द्वारा एक आंदोलन शुरू किया गया। तब लाहौर में रावी नदी के किनारे जवाहरलाल नेहरू जी ने तिरंगा फहराया। ततपश्चात सम्पूर्ण भारतवर्ष ने 26 जनवरी 1930 को पहली बार स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया गया। तब से लेकर सन 1947 तक, 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा। फिर 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद होने पर यह दिवस भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
उन्होंने कहा कि आप सभी जानते है कि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराया जाता है। साध्वी जो ने कहा कि तिरंगा तीन रंगों का सुंदर सुमेल है जो हमें जीवन जीने की कला सीखता है। जो हमें समस्त भारतीयों को सदैव यह प्रेरणा देता है कि यह आज़ादी इतनी आसानी से नही मिली, इसके पीछे देश भक्तों का बलिदान एवं कुरबानियां है। तिरंगे का सबसे ऊपर का केसरिया रंग प्रतीक है बलिदान एवं त्याग का, हमें देश को आजाद करवाने के लिए सबसे पहले बलिदान एवं कुरबानियां देनी पड़ी। उसके बाद आता है सफेद रंग जो कि प्रतीक है शांति का। और अंत मे आता है हरा रंग जो दर्शाता है खुशहाली को। यह पूर्ण तिरंगा हमें समझाता है पूर्णतः आज़ाद भारत के लिए बलिदान, कुर्बानी, त्याग एवं फिर खुशहाली और आज़ादी। परंतु अगर आज इतने वर्षो बाद अपने देश की दशा देखें तो कैसी हो गयी है। आज मानव मन का गुलाम हो कर वासनाओं, तृष्णाओं से ग्रसित हो कर रह गया है। मानव की सोच पशु वत हो चुकी है, जब जब संसार की ऐसी दशा हुई उसका समाधान एक पूर्ण महापुरुष ने दिया।
साध्वी जी ने कहा कि हमे अपने मन को उर्धगामी बनाना होगा। मन को उर्धगामी बनाने के लिए कोई बाहरी उपाय नही है। इसके लिए हमारे महापुरुषों ने एक अमोघ उपाय बताया है जिसे ब्रह्मज्ञान कहते है। ब्रह्म मतलब ईश्वर एवं ज्ञान से भाव जानना, प्रत्यक्ष अनुभव करना। ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करना ही ब्रह्मज्ञान है। ब्रह्मज्ञान को प्राप्त करने के पश्चात मानव का मन विकारों की दलदल से बाहर आ जाता है और मानव अपने मन के उपर नियंत्रण कर लेता है। वास्तविक आजादी का आनन्द हम तब ही प्राप्त कर सकते है जब बाहरी आज़ादी के साथ-साथ मन की आज़ादी भी प्राप्त कर सके। इस कार्यक्रम में श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्याओं एवं शिष्यों द्वारा सुमधुर देश भक्ति के गीतों को प्रस्तुत किये। अंत मे कार्यक्रम में आये हुए सभी श्रद्धालुओं में भंडारे का वितरण किया गया।