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भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मांगलिक कार्यक्रम के लिए बृहस्पति ग्रह का बड़ा ही महत्व

December 16, 2019 09:58 PM
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मांगलिक कार्यक्रम के लिए बृहस्पति ग्रह का बड़ा ही महत्व है। जब गुरु बृहस्पति ग्रह सूर्य के नजदीक आते हैं तो बृहस्पति की सक्रियता न्यून हो जाती है जिसे हम अस्त होना भी कहते हैं। ऐसी अवस्था में जितने भी मांगलिक कार्य हैं, उसे नहीं किया जाता है और इस अवस्था को खरमास या मलमास कहा जाता है।आज पंडित कृष्ण मेहता बता रहे हैं इस मास क्या ना करे ---
कब से लग रहा है खरमास?
 ज्योतिषीय गणना के आधार पर इस वर्ष सूर्य आज 16 दिसंबर 2019 को शाम 18.30 पर धनु राशि में प्रवेश कर रहे हैं और 15 जनवरी 2020 को सुबह 4.57 तक इसी राशि में रहेंगा।  इस महीने में हिन्दू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और कोई भी धार्मिक संस्कार नहीं होता है।
हिन्दू धर्म में खरमास के महीने में किसी भी तरह के शुभ काम नहीं किए जाते। पंचांग की मानें तो जबसे सूर्य बृहस्पति राशि में प्रवेश करता है तभी से खरमास या मलमास प्रारंभ हो जाता है। हिन्दू धर्म में इस महीने को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए इस महीने में किसी भी तरह के नए या शुभ काम नहीं किए जाते हैं। मलमास को मलिन मास माना जाता है। मलिन मास होने के कारण इस महीने को मलमास भी कहा जाता है।
क्या नर्क में जाता है खरमास में मरने वाला?
 मान्यता है कि खरमास में यदि कोई प्राण त्याग करता है तो उसे निश्चित तौर पर नर्क में निवास मिलता है। इसका उदाहरण महाभारत में भी मिलता है, जब भीष्म पितामह शरशैया पर लेटे होते हैं लेकिन खरमास के कारण वे अपने प्राण इस माह नहीं त्यागते। जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, भीष्म पितामह अपने प्राण त्याग देते हैं
 ऋषियों के चिंतन में सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में हर माह का अपना एक अलग और विशेष महत्व है, इसमें शुभ-अशुभ जैसी बातों का भी विशेष ध्यान रखा जाता है किसी भी मांगलिक कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है, ताकि वह काम सफलतापूर्वक पूर्ण हो और उसका पूरा लाभ व्यक्ति को प्राप्त हो। पंचांग में शरद ऋतु में एक माह का समय ऐसा आता है जब मांगलिक कार्य पूर्णत: प्रतिबंधित होते हैं, इसे खरमास या मलमास कहा जाता है। इस वर्ष खरमास 16 दिसंबर 2019 से शुरू हो रहा है, जो अगले वर्ष 14 जनवरी 2020 तक रहेगा।
खरमास के दौरान शादी, सगाई, मुंडन,    गृह प्रवेश, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरमास या मलमास में मांगलिक कार्यों के करने से उनका वांछित फल प्राप्त नहीं होता है। 15 जनवरी को सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा, इसे ही मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं, इस दिन से देवताओं का दिन प्रारंभ होता है।
इस महीने में सूर्य देव की उपासना करने का विशेष महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि इस समय सूर्य का रथ घोड़े के स्थान पर गधे का हो जाता है। इन गधों का नाम ही खर है। इसलिए इस माह खरमास भी कहा जाता है।
मार्कण्डेय पुराण की एक कथा के अनुसार
भगवान सूर्यदेव 7 घोड़ों के रथ पर सवार होकर लगातार ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं. उन्हें कहीं पर भी रुकने की इजाजत नहीं है. उनके रुकते ही जनजीवन भी जो ठहर जाएगा।लेकिन जो घोड़े लगातार चलने व विश्राम न मिलने के कारण भूख-प्यास से बहुत थक जाते हैं. उनकी इस दशा को देखकर सूर्यदेव का मन भी द्रवित हो गया।भगवान सूर्यदेव उन्हें एक तालाब किनारे ले गए लेकिन उन्हें तभी यह भी आभास हुआ कि अगर रथ रुका तो अनर्थ हो जाएगा. लेकिन घोड़ों का सौभाग्य कहिए कि तालाब के किनारे दो खर मौजूद थे।
भगवान सूर्यदेव घोड़ों को पानी पीने व विश्राम देने के लिए छोड़ देते हैं और खर यानी गधों को अपने रथ में जोड़ लेते हैं रथ की गति धीमी हो जाती है फिर भी जैसे-तैसे 1 मास का चक्र पूरा होता है, तब तक घोड़ों को भी विश्राम मिल चुका होता है. इस तरह यह क्रम चलता रहता है।
खरमास अंग्रेजी कैलेंडर के सूर्यदेव के धनु राशि में संक्रमण से शुरू होता है व 14 जनवरी को मकर राशि में संक्रमण न होने तक रहता है. इसी तरह 14 मार्च के बाद सूर्य, मीन राशि में संक्रमित होते हैं। इस दौरान लगभग सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं।
सनातन हिन्दू धर्म में हिन्दी महीने के अपने अलग-अलग महत्व हैं। कुछ महीने को अत्यंत शुभ माना जाता है तो वहीं कुछ महीने को अशुभ बताया जाता है।कुछ महीने ऐसे होते हैं जिनमें किसी भी कार्य को किया जा सकता है वहीं कुछ महीने में शुभ कार्य करने की मनाही होती है। पौष मास इन्हीं महीनों में से एक है। पौष का महीना  13 दिसंबर से शुरू हो चुका है और इसी के साथ शुरू हो गया है खरमास।
खरमास के शुरू होते ही महीने भर के लिए सभी तरह के शुभ कार्य बंद हो जाते हैं। फिर चाहे वो शादी से जुड़ी कोई रस्म हो या गृह निर्माण से जुड़ी। इस महीने किया गया कोई भी कार्य अपशगुन माना जाता है। मान्यता ये भी है कि खरमास के समय कोई भी कार्य सफल नहीं हो पाता। खरमास अब अगले साल 14 जनवरी 2020 को खत्म होगा। कोई भी शुभ कार्य अब 14 जनवरी से शुरू होगें।खरमास या मलमास पौष माह की शुरू होनेवाली पहली तिथि से मकर संक्रांति तक यानी 14 जनवरी 2020 तक चलेगा। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो गुरु अस्त और धनु संक्रांति खरमास के कारण शुभ मुहूर्त का अभाव रहता है। वहीं एक महीने तक विवाह, मुंडन, व्रत उद्यापन, घर का निर्माण और ग्रहप्रवेश जैसे काम करना वर्जित माना जाता है
इस जगत की आत्मा का केंद्र सूर्य है। बृहस्पति की किरणें अध्यात्म नीति व अनुशासन की ओर प्रेरित करती हैं। लेकिन एक-दूसरे की राशि में आने से समर्पण व लगाव की अपेक्षा त्याग, छोड़ने जैसी भूमिका अधिक देती है। उद्देश्य व निर्धारित लक्ष्य में असफलताएँ देती हैं। जब विवाह, गृहप्रवेश, यज्ञ आदि करना है तो उसका आकर्षण कैसे बन पाएगा? क्योंकि बृहस्पति और सूर्य दोनों ऐसे ग्रह हैं जिनमें व्यापक समानताएँ हैं।
सूर्य की तरह यह भी हाइड्रोजन और हीलियम की उपस्थिति से बना हुआ है। सूर्य की तरह इसका केंद्र भी द्रव्य से भरा है, जिसमें अधिकतर हाइड्रोजन ही है जबकि दूसरे ग्रहों का केंद्र ठोस है। इसका भार सौर मंडल के सभी ग्रहों के सम्मिलित भार से भी अधिक है। यदि यह थोड़ा और बड़ा होता तो दूसरा सूर्य बन गया होता।
पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर सूर्य तथा 64 करोड़ किलोमीटर दूर बृहस्पति वर्ष में एक बार ऐसे जमाव में आते हैं कि सौर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के माध्यम से बृहस्पति के कण काफी मात्रा में पृथ्वी के वायुमंडल में पहुँचते हैं, जो एक-दूसरे की राशि में आकर अपनी किरणों को आंदोलित करते हैं।
इस कारण धनु व मीन राशि के सूर्य को खरमास-मलमास की संज्ञा देकर व सिंह राशि के बृहस्पति में सिंहस्थ दोष दर्शाकर भारतीय भूमंडल के विशेष क्षेत्र गंगा और गोदावरी के मध्य (धरती के कंठ प्रदेश से हृदय व नाभि को छूते हुए) गुह्य तक उत्तर भारत के उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, राज्यों में मंगल कर्म व यज्ञ करने का निषेध किया गया है, जबकि पूर्वी व दक्षिण प्रदेशों में इस तरह का दोष नहीं माना गया है।
वनवासी अंचल में क्षीण चन्द्रमा अर्थात वृश्चिक राशि के चन्द्रमा (नीच राशि के चन्द्रमा) की अवधि भर ही टालने में अधिक विश्वास रखते हैं, क्योंकि चंद्रमा मन का अधिपति होता है तथा पृथ्वी से बहुत निकट भी है, लेकिन धनु संक्रांति मलमास में वनवासी अंचलों में विवाह आयोजनों की भरमार देखी जा सकती है, किंतु सामाजिक स्तर पर उनका अनुसंधान किया जाए तो इस समय में किए जाने वाले विवाह में एक-दूसरे के प्रति संवेदना व समर्पण का स्तर कम देता है।
उत्तरभारत में यज्ञ-अनुष्ठान का बड़ा महत्व रहा है। इस महत्व पर संस्कार के निमित्त एक कथा इस प्रकार है कि पौष मास में ब्रह्मा ने पुष्य नक्षत्र के दिन अपनी पुत्री का विवाह किया, लेकिन विवाह समय में ही धातु क्षीण हो जाने के कारण ब्रह्मा द्वारा पौष मास व पुष्य नक्षत्र श्रापित किए गए।
इस तरह के विज्ञान की कई रहस्यमय बातों को कथानक द्वारा बताई जाने के पौराणिक आख्यानों में अनेक प्रसंग मिलते हैं, इसलिए धनु संक्रांति सूर्य पौष मास में रहने व मीन सूर्य चैत्र मास में रहने से यह मास व पुष्य नक्षत्र भी विवाह में वर्जित किया गया है।
खरमास के विशेष नियम जिनके पालन से होगा लाभ
 खरमास का महीना एक ऐसा महीना है जिसमें दान और पुण्य करने का सबसे अधिक फल मिलता है। इस महीने में आप जितने जरूरतमंदों और गरीबों की मदद करेंगे उतना ही आपको लाभ होगा।
इस महीने में सेहत और समृद्धि के लिए हर लोज सूर्य को जल चढ़ाने का नियम बना लें। सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि कर लें। इसके बाद चढ़ते सूरज को अर्घ्य दें। ऐसा करना आपको शुभ फल देगा।
खरमास के प्रारंभ होने के बाद घर या किसी अन्य भवन का निर्माण पूर्णतः वर्जित है. इस दौरान भवन निर्माण सामग्री लेना भी अशुभ होता है।
विवाह और उपनयन जैसे शुभ संस्कार भी इस दौरान पूर्णतः वर्जित रहते हैं. इसके अलावा गृह प्रवेश जैसे कार्य भी इस दौरान नहीं होने चाहिए।
इस महीने किसी संपत्ति अथवा भूमि की खरीद भी  अशुभ होती है. इस महीने के दौरान इससे बचना चाहिए।
खरमास की शुरुआत के बाद नया वाहन खरीदने से भी बचना चाहिए।
खरमास की अवधि किसी भी शुभ कार्य के लिए अशुभ मानी जाती है।  इसी कारण इस दौरान सारे महत्वपूर्ण कार्य जैसे शादी, यज्ञोपवीत, गृहप्रवेश इत्यादि नहीं आयोजित किए जाते।
 
 
 
 
 
 
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